कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 35 प्रेमचन्द की कहानियाँ 35प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का पैंतीसवाँ भाग
उधर रावण रथ को भगाता हुआ पंपासर पहाड़ के निकट पहुंचा, तो सीताजी ने देखा कि पहाड़ पर कई बन्दरों की-सी सूरत वाले आदमी बैठे हुए हैं। सीताजी ने विचार किया कि रामचन्द्र मुझे ढूंढ़ते हुए अवश्य इधर आवेंगे। इसलिए उन्होंने अपने कई आभूषण और चादर रथ के नीचे डाल दिये कि संभवतः इन लोगों की दृष्टि इन चीजों पर पड़ जाय और वह रामचन्द्र को मेरा पता बता सकें। आगे चलकर तुमको मालूम होगा कि सीताजी की इस कुशलता से रामचन्द्र को उनका पता लगाने में बड़ी सहायता मिली।
लंका पहुंचकर रावण ने सीताजी को अपने महल, बाग, खजाने, सेनायें सब दिखायीं। वह समझता था कि मेरे ऐश्वर्य और धन को देखकर सीताजी लालच में पड़ जायंगी। उसका महल कितना सुन्दर था, उपवन कितने नयनाभिराम थे, सेनायें कितनी असंख्य और नये-नये अस्त्रशस्त्रों से कितनी सजी हुई थीं, कोष कितना असीम था, उसमें कितने हीरेजवाहर भरे हुए थे! किन्तु सीताजी पर इस सेना का भी कुछ प्रभाव न हुआ। उन्हें विश्वास था कि रामचन्द्र के बाणों के सामने यह सेनायें कदापि न ठहर सकेंगी। जब रावण ने देखा कि सीताजी ने मेरे इस ठाटबाट की तिनके बराबर भी परवा न की तो बोला- तुम्हें अब भी मेरे बल का अनुमान नहीं हुआ? क्या तुम अब भी समझती हो कि रामचन्द्र तुम्हें मेरे हाथों से छुड़ा ले जायेंगे? इस विचार को मन से निकाल डालो।
सीता जी ने घृणा की दृष्टि से उसकी ओर देखकर कहा- इस विचार को मैं हृदय से किसी प्रकार नहीं निकाल सकती। रामचन्द्र अवश्य मुझे ले जायेंगे और तुझे इस दुष्टता और नीचता का मजा भी चखायेंगे। तेरी सारी सेना, सारा धन, सारे अस्त्रशस्त्र धरे रह जायेंगे। उनके बाण मृत्यु के बाण हैं। तू उनसे न बच सकेगा। वह आन की आन में तेरी यह सोने की लंका राख और काली कर देंगे। तेरे वंश में कोई दीपक जलाने वाला भी न रह जायगा। यदि तुझे अपने जीवन से कुछ प्रेम हो, तो मुझे उनके पास पहुंचा दे और उनके चरणों पर नम्रता से गिरकर अपनी धृष्टता की क्षमा मांग ले। वह बड़े दयालु हैं। तुझे क्षमा कर देंगे। किन्तु यदि तू अपनी दुष्टता से बाज न आया तो तेरा सत्यानाश हो जायगा।
रावण क्रोध से जल उठा। महल के समीप ही अशोकवाटिका नाम का एक उपवन था, रावण ने सीताजी को उसी में ठहरा दिया और कई राक्षसी स्त्रियों को इसलिए नियुक्त किया कि वह सीता को सतायें और हर प्रकार का कष्ट पहुंचाकर इन्हें उसकी ओर आकृष्ट करने के लिए विवश करें; अवसर पाकर उसकी प्रशंसा से भी सीताजी को आकर्षित करें। यह प्रबन्ध करके वह तो चला गया, किन्तु राक्षसी स्त्रियां थोड़े ही दिनों में सीताजी की नेकी और सज्जनता और पति का सच्चा प्रेम देखकर उनसे प्रेम करने लग गयीं और उन्हें कष्ट पहुंचाने के बदले हर तरह का आराम देने लगीं। वह सीताजी को आश्वासन भी देती रहती थीं। हां, जब रावण आ जाता तो उसे दिखाने के लिए सीता पर दो-चार घुड़कियां जमा देती थीं।
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