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प्रेमचन्द की कहानियाँ 35

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :380
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9796
आईएसबीएन :9781613015339

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का पैंतीसवाँ भाग


राजा साहब इन्हीं विचारों में डूबे थे। सहसा उन्हें अपनी काल-कोठरी की ओर किसी के आने की आहट मिली। रात बहुत जा चुकी थी। चारों ओर सन्नाटा छाया था, और उसी अंधकारमय सन्नाटे में किसी के पैरों की चाप स्पष्ट सुनाई देती थी। कोई बहुत पाँव दबा-दबाकर चला आ रहा था। राजा साहब का कलेजा धक्-धक् करने लगा। वह उठकर खड़े हो गए। हम निरस्त्र और प्रतिकार के लिए असमर्थ होने पर भी बैठे-बैठे वारों का निशाना बनना नहीं चाहते। खड़े हो जाना आत्म-रक्षा का अंतिम प्रयत्न है। कोठरी में ऐसी कोई वस्तु न थी, जिससे वह अपनी रक्षा कर सकते। समझ गए, अंतिम समय आ गया। शत्रुओं ने इस तरह मेरे प्राण लेने की ठानी है। अच्छा है, जीवन के साथ इस विपत्ति का अंत हो जायगा।

एक क्षण में उनके सम्मुख एक आदमी आकर खड़ा हो गया। राजा साहब ने पूछा- कौन है?

उत्तर मिला- मैं हूँ आप का सेवक।

राजा- ओ हो, तुम हो कप्तान! मैं शंका में पड़ा हुआ था कि कहीं शत्रुओं ने मेरा वध करने के लिए कोई दूत न भेजा हो।

कप्तान- शत्रुओं ने कुछ और ही ठानी है। आज बादशाह सलामत की जान बचती नहीं नजर आती।

राजा- अरे! यह क्योंकर?

कप्तान- जब से आपको यहाँ नजरबन्द किया गया है, सारे राज्य में हाहाकार मचा हुआ है। स्वार्थी कर्मचारियों ने लूट मचा रखी है। अँग्ररेजों की खुदाई फिर रही है। जो जी में आता है, करते हैं; किसी की मजाल नहीं कि चूं कर सके। इस एक महीने में शहर के सैकड़ों बड़े-बड़े रईस मिट गए। रोशनुद्दौला की बादशाही है। बाजारों का भाव चढ़ता जाता है। बाहर से व्यापारी लोग डर के मारे कोई जिंस ही नहीं लाते। दूकानदारों से मनमानी रकमें महसूल के नाम पर वसूल की जा रही हैं। गल्ले का भाव इतना चढ़ गया है कि कितने घरों में चूल्हा जलने की नौबत नहीं आती। सिपाहियों को अभी तक तनख्वाह नहीं मिली। वे जाकर दूकानदारों को लूटते हैं। सारे राज्य में बद-अमली हो रही है। मैंने कई बार यह कैफियत बादशाह सलामत के कानों तक पहुँचाने की कोशिश की; मगर वह यह तो कह देते हैं कि इसकी तहकीकात करूंगा, और फिर बेखबर हो जाते हैं। आज शहर के बहुत दूकानदार फरियाद लेकर आये थे कि हमारे हाल पर निगाह न की गई, तो हम शहर छोड़कर और कहीं चले जायँगे। क्रिस्तानों ने उन्हें सख्त कहा, धमकाया, लेकिन उन्होंने जब तक अपनी सारी मुसीबत न बयान कर ली, वहाँ से न हटे। आखिर जब बादशाह सलामत ने उन्हें दिलासा दिया, तब कहीं गये।

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