लोगों की राय

कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 30

प्रेमचन्द की कहानियाँ 30

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :137
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9791
आईएसबीएन :9781613015285

Like this Hindi book 4 पाठकों को प्रिय

52 पाठक हैं

प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का तीसवाँ भाग


राणा कुछ देर सोचकर बोले- ''तुमने वचन दिया है, उसका पालना करना मेरा कर्तव्य है। तुम देवी हो, तुम्हारे वचन नहीं टल सकते। द्वार खोल दो, लेकिन यह उचित नहीं है कि वह प्रभा से अकेले मुलाक़ात करे। तुम स्वयं उसके साथ जाना। मेरी खातिर से इतना कष्ट उठाना। मुझे भय है कि वह उसकी जान लेने का इरादा करके न आया हो। ईर्ष्या में मनुष्य अंधा हो जाता है। बाई जी, मैं अपने हृदय की बात आप से कहता हूँ। मुझे प्रभा को हर लाने का अत्यंत शोक है। मैंने समझा था कि यहाँ रहते-रहते वह हिल-मिल जाएगी, किंतु यह अनुमान गलत निकला। मुझे भय है कि यदि उसे कुछ दिन यहाँ और रहना पड़ा तो वह जीती न बचेगी। मुझ पर एक अबला की हत्या का अपराध लग जाएगा। मैंने उससे झालावार जाने के लिए कहा, पर वह राजी न हुई। आज आप उन दोनों की बातें सुनें। अगर वह मंदारकुमार के साथ जाने पर राजी हो, तो मैं प्रसन्नतापूर्वक अनुमति दे दूँगा। मुझसे उसका कुढ़ना नहीं देखा जाता। ईश्वर इस सुंदरी का हृदय मेरी ओर फेर देता तो मेरा जीवन सफल हो जाता, किंतु जब यह सुख भाग्य में लिखा ही नहीं है तो क्या वश है। मैंने तुमसे ये बातें कहीं, इसके लिए मुझे क्षमा करना। तुम्हारे पवित्र हृदय में ऐसे विषयों के लिए स्थान कहाँ?''

मीरा ने आकाश की ओर संकोच से देखकर कहा- ''तो मुझे आज्ञा है। मैं चोरद्वार खोल दूँ?''

राणा- ''तुम इस घर की स्वामिनी हो! मुझसे पूछने की जरूरत नहीं।''

मीराबाई राणा को प्रणाम करके चली गई।

आधी रात बीत चुकी थी। प्रभा चुपचाप बैठी दीपक की ओर देख रही थी और सोचती थी, इसके घुलने से प्रकाश होता है; यह बत्ती अगर जलती है तो दूसरों को लाभ पहुँचाती है। मेरे जलने से किसी को क्या लाभ? मैं क्यों घुलूँ? मेरे जीने की क्या जरूरत है?

उसने फिर खिड़की से सिर निकाल कर आकाश की तरफ़ देखा। काले पट पर उज्ज्वल तारे जगमगा रहे थे। प्रभा ने सोचा- मेरे अंधकारमय भाग्य में ये दीप्तमान तारे कहाँ हैं? मेरे लिए जीवन के सुख कहाँ हैं? क्या रोने के लिए जीऊँ? ऐसे जीने से क्या लाभ? और जीने में उपहास भी तो है। मेरे मन का हाल कौन जानता है? संसार मेरी निंदा करता होगा। झालावार की स्त्रियाँ मेरी मृत्यु के शुभ समाचार सुनने की प्रतीक्षा कर रही होंगी। मेरी प्रिय माता लज्जा से आँखें न उठा सकती होंगी, लेकिन जिस समय उनको मेरे मरने की खबर मिलेगी, गर्व से उनका मस्तक ऊँचा हो जाएगा। यह बेहयाई का जीना है। ऐसे जीने से मरना कहीं उत्तम है।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book