कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 23 प्रेमचन्द की कहानियाँ 23प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का तेइसवाँ भाग
सती ने उत्तर दिया- ''क्षमा नहीं हो सकती। तुमने एक नौजवान राजपूत की जान ली है, तुम भी जवानी में मारे जावोगे।''
सती के वचन कभी झूठे हुए हैं? एकाएक चिता में आग लग गई। जय-जयकार के शब्द गूँजने लगे। सती का मुख-चंद्र आग में यों चमकता था जैसे सबेरे की ललाई में सूर्य चमकता है। थोड़ी देर में वहाँ राख के ढेर के सिवा और कुछ न रहा।
इस सती के मन में कैसा सत था। परसों जब उसने व्रजविलासिनी को झिझककर धर्मसिंह के सामने जाते देखा था, उसी समय उसके दिल में संदेह हो गया था पर जब रात को उसने देखा कि मेरा पति इसी स्त्री के सामने दुखिया की तरह बैठा हुआ है, तब वह संदेह निश्चय की सीमा तक पहुँच गया और यह निश्चय अपने साथ सत लेता आया था। सबेरे धर्मसिंह उठे तब राजनंदिनी ने कहा था कि मैं व्रजविलासिनी के शत्रु का सिर चाहती हूँ तुम्हें लाना होगा और ऐसा ही हुआ। अपने सती होने के सब कारण राजनंदिनी ने जानबूझकर पैदा किए थे, क्योंकि इसके मन में सत था। पाप की आग कैसी तेज होती है? एक पाप ने कितनी जानें लीं? राजवंश के दो कुँवर और दो कुँवरियाँ देखते-देखते इस अग्निकुंड में स्वाहा हो गईं। सती का वचन सच हुआ और सात ही सप्ताह के भीतर पृथ्वीसिंह दिल्ली में कत्ल किए गए और दुर्गाकुँवरि सती हो गई।
7. पिसनहारी का कुआँ
गोमती ने मृत्यु-शय्या पर पड़े हुए चौधरी विनायकसिंह से कहा- चौधरी, मेरे जीवन की यही लालसा थी।
चौधरी ने गम्भीर हो कर कहा- इसकी कुछ चिंता न करो काकी; तुम्हारी लालसा भगवान् पूरी करेंगे। मैं आज ही से मजूरों को बुला कर काम पर लगाये देता हूँ। दैव ने चाहा, तो तुम अपने कुएँ का पानी पियोगी। तुमने तो गिना होगा, कितने रुपये हैं?
गोमती ने एक क्षण आँखें बंद करके, बिखरी हुई स्मृति को एकत्र करके कहा- भैया, मैं क्या जानूँ, कितने रुपये हैं? जो कुछ हैं, वह इसी हाँड़ी में हैं। इतना करना कि इतने ही में काम चल जाए। किसके सामने हाथ फैलाते फिरोगे?
चौधरी ने बंद हाँड़ी को उठा कर हाथों से तौलते हुए कहा- ऐसा तो करेंगे ही काकी; कौन देनेवाला है। एक चुटकी भीख तो किसी के घर से निकलती नहीं, कुआँ बनवाने को कौन देता है। धन्य हो तुम कि अपनी उम्र भर की कमाई इस धर्म-काज के लिए दे दी।
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