कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 20 प्रेमचन्द की कहानियाँ 20प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का बीसवाँ भाग
लालाजी ने छेड़ा, 'सब गमले क्या करोगी? दस-पाँच पसन्द कर लो। शेष मैं बाहर रखवा दूंगा।'
'जी नहीं। मैं एक भी न छोङूँगी। सब यहीं रखे जायँगे।'
'बड़ी लालचिन हो तुम।'
'लालचिन ही सही। मैं आपको एक भी न दूंगी।'
'दो-चार तो दे दो? इतनी मेहनत से लाया हूँ।'
'जी नहीं, इनमें से एक भी न मिलेगा।'
दूसरे दिन आशा ने अपने को आभूषण से खूब सजाया और फीरोजी साड़ी पहनकर निकली, तब लालाजी की आँखों में ज्योति आ गयी। समझे, अवश्य ही अब उनके प्रेम का जादू 'कुछ-कुछ' चल रहा है। नहीं तो उनके बार-बार के आग्रह करने पर भी, बार-बार याचना करने पर भी, उसने कोई आभूषण न पहना था। कभी-कभी मोतियों का हार गले में डाल लेती थी, वह भी ऊपरी मन से। आज वह आभूषणों से अलंकृत होकर फूली नहीं समाती, इतरायी जाती है, मानो कहती हो, देखो, मैं कितनी सुन्दर हूँ ! पहले जो बन्द कली थी, वह आज खिल गयी थी। लालाजी पर घड़ों नशा चढ़ा हुआ था। वे चाहते थे, उनके मित्र और बन्धु-वर्ग आकर इस सोने की रानी के दर्शनों से अपनी आँखें ठंडी करें। देखें कि वह कितनी सुखी, संतुष्ट और प्रसन्न है। जिन विद्रोहियों ने विवाह के समय तरह-तरह की शंकाएँ की थीं, वे आँखें खोलकर देखें कि डंगामल कितना सुखी है। विश्वास, अनुराग और अनुभव ने चमत्कार किया है ! उन्होंने प्रस्ताव किया चलो, कहीं घूम आयें। बड़ी मजेदार हवा चल रही है।
आशा इस वक्त कैसे जा सकती थी? अभी उसे रसोई में जाना था, वहाँ से कहीं बारह-एक बजे फुर्सत मिलेगी। फिर घर के दूसरे धन्धे सिर पर सवार हो जायँगे। सैर-सपाटे के पीछे क्या घर चौपट कर दें? सेठजी ने उसका हाथ पकड़ लिया और कहा, 'नहीं, आज मैं तुम्हें रसोई में न जाने दूंगा।'
'महाराज के किये कुछ न होगा।'
'तो आज उसकी शामत भी आ जायगी।'
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