कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 20 प्रेमचन्द की कहानियाँ 20प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का बीसवाँ भाग
'बड़े चालाक हो तुम।'
जुगल ने अपनी बुद्धिमत्ता का प्रदर्शन किया आदमी अपने घर में सूखी रोटियाँ खाकर सो रहता है, लेकिन दावत में तो अच्छे-अच्छे पकवान ही खाता है। वहाँ भी यदि रूखी रोटियाँ मिलें, तो वह दावत में जाय ही नहीं।
'यह सब मैं नहीं जानती। एक गाढ़े का कुर्त्ता बनवा लो और एक टोपी ले लो, हजामत के लिए दो आने पैसे ऊपर से ले लो।'
जुगल ने मान करके कहा, 'रहने दीजिए। मैं नहीं लेता। अच्छे कपड़े पहनकर निकलूँगा, तब तो आपकी याद आवेगी। सड़ियल कपड़े पहनकर तो और जी जलेगा।'
'तुम स्वार्थी हो, मुफ्त के कपड़े लोगे और साथ ही बढ़िया भी।'
'जब यहाँ से जाने लगूँ, तब आप मुझे अपना एक चित्र दीजिएगा।'
'मेरा चित्र लेकर क्या करोगे?'
'अपनी कोठरी में लगाऊँगा और नित्य देखा करूँगा। बस, वही साड़ी पहनकर खिंचवाना, जो कल पहनी थी और वही मोतियों की माला भी हो। मुझे नंगी-नंगी सूरत अच्छी नहीं लगती। आपके पास तो बहुत गहने होंगे। आप पहनती क्यों नहीं !'
'तो तुम्हें गहने अच्छे लगते हैं?'
'बहुत।'
लालाजी ने फिर आकर जलते हुए मन से कहा, 'अभी तक तुम्हारी रोटियाँ नहीं पकीं जुगल? अगर कल से तूने अपने-आप अच्छी रोटियाँ न पकायीं तो मैं तुझे निकाल दूंगा।'
आशा ने तुरन्त हाथ-मुँह धोया और बड़े प्रसन्न मन से लालाजी के साथ गमले देखने चली। इस समय उसकी छवि में प्रफुल्लता की रौनक थी, बातों में भी जैसे शक्कर घुली हुई थी। लालाजी का सारा खिसियानापन मिट गया था। उसने गमलों को मुग्धा आँखों से देखा। उसने कहा, मैं इनमें से कोई गमला न जाने दूंगी। सब मेरे कमरे के सामने रखवाना, सब ! कितने सुन्दर पौधे हैं, वाह ! इनके हिन्दी नाम भी मुझे बतला देना।'
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