ई-पुस्तकें >> गोस्वामी तुलसीदास गोस्वामी तुलसीदाससूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
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महाकवि तुलसीदास की पद्यात्मक जीवनी
[61]
"हो गयी रतन, कितनी दुर्बल,
चिन्ता में बहन, गयी तू गल
माँ, बापूजी, भाभियाँ सकल पड़ोस की
हैं विकल देखने को सत्वर
सहेलियाँ सब, ताने देकर
कहती हैं, बेचा वर के कर, आ न सकी"
[62]
"तुझसे पीछे भेजी जाकर
आयीं वे कई बार नैहर;
पर तुझे भेजते क्यों श्रीवरजी डरते ?
हम कई बार आ-आकर घर
लौटे पाकर झूठे उत्तर;
क्यों बहन, नहीं तू सम, उन पर बल करते ?
[63]
"आँसुओं भरी माँ दुख के स्वर
बोलीं, रतन से कहो जाकर,
क्या नहीं मोह कुछ माता पर अब तुमको ?
जामाताजी वाली ममता
माँ से तो पाती उत्तमता।"
बोले बापू, योगी रमता मैं अब तो-
[64]
"कुछ ही दिन को हूँ कल-द्रुम;
छू लूँ पद फिर कह देना तुम।"
बोली भाभी, लाना कुंकुम-शोभा को;
फिर किया अनावश्यक प्रलाप,
जिसमें जैसी स्नेह की छाप !
पर अकथनीय करुणा-विलाप जो माँ को।
[65]
"हम बिना तुम्हारे आये घर,
गाँव की दृष्टि से गये उतर;
क्यों बहन, ब्याह हो जाने पर, घर पहला
केवल कहने को है नैहर?-
दे सकता नहीं स्नेह-आदर?-
पूजे पद, हम इसलिए अपर?" उर दहला
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