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गोस्वामी तुलसीदास

सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :53
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9734
आईएसबीएन :9781613015506

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महाकवि तुलसीदास की पद्यात्मक जीवनी


[51]

उस प्रियावरण प्रकाश में बँध,
सोचता, "सहज पड़ते पग सध;
शोभा को लिये ऊर्ध्व औ अध घर बाहर
यह विश्व, सूर्य, तारक-मण्डल,
दिन, पक्ष, मास, ऋतु, वर्ष चपल;
बँध गति-प्रकाश में बुद्ध सकल पूर्वापर।"

[52]

"बन्ध के बिना कह, कहाँ प्रगति ?
गति-हीन जीव को कहाँ सुरति ?
रति-रहित कहाँ सुख केवल क्षति-केवल क्षति;
यह क्रम विनाश इससे चलकर
आता सत्वर मन निम्न उतर;
छूटता अन्त में चेतन स्तर, जाती मति।"

[53]

"देखो प्रसून को वह उन्मुख !
रँग-रेणु-गन्ध भर व्याकुल-सुख,
देखता ज्योतिमुखः आया दुख पीड़ा सह।
चटका कलि का अवरोध सदल,
वह शोधशक्ति, जो गन्धोच्छल,
खुल पड़ती पल-प्रकाश को, चल परिचय वह।"

[54]

"जिस तरह गन्ध से बँधा फूल,
फैलता दूर तक भी समूल;
अप्रतिम प्रिया से, त्यों दुकूल-प्रतिभा में
मैं बँधा एक शुचि आलिंगन,
आकृति में निराकार, चुम्बन;
युक्त भी मुक्त यों आजीवन, लघिमा में।"

[55]

सोचता कौन प्रतिहत चेतन-
वे नहीं प्रिया के नयन, नयन;
वह केवल वहाँ मीन-केतन, युवती में;
अपने वश में कर पुरुष देश
है उड़ा रहा ध्वज-मुक्तकेश;
तरुणी-तनु आलम्बन-विशेष, पृथ्वी में?

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