लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> वीर बालिकाएँ

वीर बालिकाएँ

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :70
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9732
आईएसबीएन :9781613012840

Like this Hindi book 7 पाठकों को प्रिय

152 पाठक हैं

साहसी बालिकाओँ की प्रेरणात्मक कथाएँ

लालबाई को अपने पिता और भाई के मारे जाने का पता पहले ही लग गया था। उसने खाना-पीना छोड़ दिया था। जब उस सरदार के यहाँ अहमदशाह का दूत पहुँचा तो लालबाई ने सरदार को बुलाकर कहा- 'चाचाजी! आप मेरे लिये संकट में न पड़ें। मैं अहमदशाह के पास जाना चाहती हूँ।'

सरदारने कहा- 'बेटी! तू चिन्ता मत कर। हम सब भी राजपूत हैं। हमारे जीते-जी कोई तेरी ओर आँख उठाकर देख नहीं सकता।'

लेकिन लालबाई ने तो पक्का निश्चय कर लिया था अपने पिता को मारने वाले के पास जाने का। उसकी हठ सबको विचित्र लगती थी, पर कोई उपाय तो था नहीं। अहमदशाह तो यह समाचार पाकर फूला नहीं समाता था। विवाह का दिन निश्चित हो गया। चाँदी झील के पास शाही महल में विवाह की तैयारी हुई। उस समय की प्रथा थी कि लड़की के लिये लड़का और लड़के के लिये लड़की के यहाँ से विवाह के कपड़े आते थे।

लालबाई के भेजे कपड़े पहिन कर अहमदशाह विवाह-मण्डप में आया और लालबाई ने भी अहमदशाह के भेजे कपड़े पहिन रखे थे। बहुत-से मौलवी और पंडित विवाह कराने के लिये बुलाये गये थे। लेकिन बाहर जनता की भीड़ इकट्ठी हो गयी थी और वह बादशाह और उनकी नयी बेगम को देखने के लिये हल्ला मचा रही थी। जनता को संतुष्ट करने के लिये अहमदशाह लालबाई के साथ राजमहल के कँगूरे पर गया। लेकिन वहाँ पहुँचते-पहुँचते तो अहमदशाह के दाहिने कंधे से आग की लपटें निकलने लगीं। लालबाई ने बड़े तीखे विष में सने कपड़े भेजे थे। जब तक कोई इस बात को समझे कि लालबाई ने अपने पिता का बदला लेने के लिये यह चाल चली है, लालबाई कँगूरे पर से चाँदी झील में कूद पड़ी। अहमदशाह विष की ज्वाला से पागलों के समान इधर-उधर भागा और तड़प-तड़प कर मर गया। आहोर के सरदार समझ गये कि लालबाई ने बदला लेने के लिये ही यह विवाह का खेल रचाया था।

* * *

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: mxx

Filename: partials/footer.php

Line Number: 7

hellothai