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वीर बालिकाएँ

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :70
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9732
आईएसबीएन :9781613012840

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साहसी बालिकाओँ की प्रेरणात्मक कथाएँ

मानबा

सूरत में उन दिनों नवाबी शासन था। यह अब से लगभग दो सौ वर्ष पहले की बात है। नवाब ने सुना कि सूरत के नगरसेठ के पास बहुत अधिक धन है तो वह बिना कोई सूचना दिये एक दिन उनके घर पहुँच गया। उन दिनों मुसलमान नवाबों के लिये यह एक साधारण बात थी। किसी धनी प्रजा के घर वे चले जाते और फिर कोई-न-कोई बहाना बनाकर उससे बहुत-सा धन ऐंठ लिया करते थे।

नगरसेठ ने नवाब का भली प्रकार स्वागत-सत्कार किया। नगरसेठ की पुत्री मानबा ने सुना कि यहाँ के नवाब अपने घर आये हैं तो वह भोली बालिका कुतूहलवश वहाँ आ गयी। मानबा बहुत ही सुन्दर थी। नवाब ने उसे देखा तो एकटक देखता ही रह गया। इस प्रकार नवाब को अपनी ओर घूर-घूरकर देखते देखकर मानबा घर के भीतर भाग गयी।

नवाब ने वहाँ तो नगरसेठ से केवल लड़की का नाम ही पूछा, लेकिन जब लौटकर अपने महल पहुँचा तो उसने सिपाही भेजकर नगरसेठ को अपने यहाँ बुलवाया और उनके आने पर बोला- ‘आपकी लड़की को मैं अपनी बेगम बनाना चाहता हूँ! आप मेरी बात मान लेंगे तो दरबार में आपको बड़ा पद मिलेगा। यदि आप मेरी बात नहीं मानेगे तो आपका सब धन लूट लिया जायगा; आपको कैदखाने में डाल दिया जायगा और फिर आपकी लडकी को तो मैं पकड़कर मँगवा ही लूँगा।’

नगरसेठ बेचारे क्या करते। नवाब कह रहा था- 'मेरी बात माने बिना अब तुम यहाँ से बाहर नहीं जा सकते।’ वह सोचने के लिये दो घंटे का समय भी नहीं देना चाहता था। विवश होकर उन्हें नवाब को अपनी पुत्री देना स्वीकार करना पड़ा। सेठजी घर पहुँचे और साथ ही नवाब ने मानबा को लेने के लिये पालकी भेज दी। मानबा रो रही थी, उसकी माता रो रही थी, पिता रो रहे थे; लेकिन कोई उपाय नहीं था। उसे पालकी में बैठना पड़ा। नवाब के महल में शहनाई बज रही थी। जब पालकी महल के दरवाजे के सामने पहुँची तो बहुत-सी दासियाँ मानबा का स्वागत करने महल के दरवाजे के बाहर आयीं।

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