लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> वीर बालक

वीर बालक

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :94
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9731
आईएसबीएन :9781613012840

Like this Hindi book 4 पाठकों को प्रिय

178 पाठक हैं

वीर बालकों के साहसपूर्ण कृत्यों की मनोहारी कथाएँ



वीर बालक अजीतसिंह और जुझारसिंह


गुरु गोविन्दसिंह आनन्दपुर के किले में थे। उनके साथ जितने सिख-सैनिक थे, उससे लगभग बीस गुनी बड़ी मुसलमानी सेना ने किले को घेर रखा था। किले में जो भोजन-सामग्री थी, वह समाप्त होने लगी। सिख-सेना के सरदारों ने गुरुजी पर बार-बार दबाव डालना प्रारम्भ किया- ‘आप बच्चों के साथ चुपचाप यहाँ से निकल जायँ। देश को एवं जाति को विधर्मियों के अत्याचार से बचाने के लिये आपको बचे रहना चाहिये।’

अपने साथियों के बहुत हठ करने पर एक दिन आधी रात को गुरुजी अपनी माता, पत्नी तथा चार पुत्रों के साथ चुपचाप किले से निकल पड़े। लेकिन वे सुरक्षित दूर नहीं जा सके थे कि मुसलमान-सेना को पता लग गया। शत्रुसेना के घुड़सवार और पैदल सैनिक मशालें ले-लेकर इधर-से-उधर दौड़ने लगे। उन लोगों की दौड़-धूप का यह परिणाम हुआ कि गुरु गोविन्द सिंहजी, उनकी पत्नी, दो पुत्र अजीतसिंह और जुझारसिंह एक ओर हो गये और गुरुजी की माता तथा दो छोटे पुत्र जोरावरसिंह और फतहसिंह दूसरी ओर हो गये।

गुरु जी सुरक्षित निकल जायँ इसलिये किले में जो सिख सैनिक थे, उन्होंने किले से निकलकर मुसलमान-सेना पर आक्रमण कर दिया। रात के अँधेरे में भयंकर युद्ध प्रारम्भ हो गया। थोड़े से सिख-सैनिक प्राणपण से जूझ रहे थे। लेकिन मुसलमान-सैनिक गुरुजी का भी पीछा कर रहे थे। गुरुजी के साथ जो सैनिक थे, वे शत्रु से लड़ते-लड़ते समाप्त हो गये थे। गुरुदेव के बड़े पुत्र अजीतसिंह से यह देखा नहीं गया। वे पिता के पास आये और प्रणाम करके बोले- 'पिताजी! हमारे सैनिक हमलोगों की रक्षा के लिये प्राण दे रहे हैं, ऐसी दशा में मैं उन्हें मृत्यु के मुख में झोंककर भागना नहीं चाहता। आप मुझे युद्ध करने की आज्ञा दें।'

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book