ई-पुस्तकें >> वीर बालक वीर बालकहनुमानप्रसाद पोद्दार
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वीर बालकों के साहसपूर्ण कृत्यों की मनोहारी कथाएँ
अपने सैनिकों की कटी भुजाएँ देखकर और उनकी बातें सुनकर शत्रुघ्नजी समझ गये कि अश्व को बाँधने वाला बालक कोई साधारण बालक नहीं है। सेनापति को उन्होंने व्यूह-निर्माण की आज्ञा दी। सम्पूर्ण सेना दुर्भेद्य व्यूहके रूप में खड़ी की गयी और तब सेना के साथ सब लोग जहाँ अश्व बँधा था, वहाँ आये। एक छोटे-से सुकुमार बालक को धनुष चढ़ाये सन्मुख खड़े देखकर सेनापति ने समझाने का प्रयत्न किया। लव ने कहा- 'तुम युद्धसे डरते हो तो लौट जाओ! मैं तुम्हें छोड़े देता हूँ। इस अश्व के स्वामी श्रीराम से जाकर कहो कि लव ने उनका घोड़ा बाँध लिया है।' अन्तत: वहाँ युद्ध प्रारम्भ हो गया। लव के बाणों की वर्षा से सेना में भगदड़ पड़ गयी। हाथी, घोड़े और सैनिक कट-कटकर गिरने लगे। सेनापति कालजित ने पूरे पराक्रम से युद्ध किया; किंतु लव ने उसके सब अस्त्र-शस्त्र खेल-खेल में काट डाले और फिर उनकी दोनों भुजाएँ और मस्तक भी काट गिराया।
पहले तो शत्रुघ्नजी को अपने सैनिकों द्वारा मिले इस समाचार पर विश्वास ही नहीं होता था कि कोई यमराज के लिये भी दुर्धर्ष सेनापति को मार सकता है। अन्त में पूरी बातें सुनकर और मन्त्री से सलाह लेकर वे स्वयं सम्पूर्ण सेना के साथ युद्धक्षेत्र में आ गये। बड़ी भारी सेना ने लव को चारों ओर से घेर लिया। लव ने जब देखा कि मैं शत्रुओं से घिर गया हूँ तब अपने बाणों से उन सैनिकों को छिन्न-भिन्न करने लगे। सैनिकों को भागते देख पुष्कल आगे बढ़े। थोड़ी ही देर के संग्राम में लव के बाण ने पुष्कल को मूर्च्छित कर दिया। पुष्कल के मूर्च्छित होने पर क्रोध करके स्वयं हनुमानजी लवसे युद्ध करने आये। उन्होंने लव पर पत्थरों तथा वृक्षों की वर्षा प्रारम्भ कर दी; किंतु लव ने उन सबके टुकड़े उड़ा दिये। क्रोध में भरकर हनुमानजी ने लव को अपनी पूंछ में लपेट लिया। इस समय लव ने अपनी माता का स्मरण करके उनकी पूँछ पर एक घूँसा मारा। इस घूँसे की चोट से हनुमानजी को बहुत पीड़ा हुई। लव को उन्होंने छोड़ दिया। अब लव ने उनको इतने बाण मारे कि वे मूर्च्छित हो गये।
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