ई-पुस्तकें >> वीर बालक वीर बालकहनुमानप्रसाद पोद्दार
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वीर बालकों के साहसपूर्ण कृत्यों की मनोहारी कथाएँ
प्रणवीर बालक राणा प्रताप
महाराणा प्रताप का जन्म सन् 1540 ई0 में हुआ था। वे महाराणा उदयसिंह के ज्येष्ठ पुत्र थे। उनकी शिक्षा-दीक्षा मेवाड़ राजवंश-परम्परा के अनुकूल हुई थी। अस्त्र-शस्त्र, सेना-संचालन, मृगया तथा राज्योचित प्रबन्ध की दक्षता उन्होंने बाल्यावस्था में ही पूर्णरूप से प्राप्त कर ली थी। राणा उदयसिंह अपने कनिष्ठ पुत्र जगमल को बहुत प्यार करते थे और उन्हीं को अपना उत्तराधिकारी घोषित करने का उन्होंने निश्चय कर लिया। प्रताप पितृभक्त बालक थे, उन्होंने पिता के निर्णय का तनिक भी विरोध नहीं किया। उनके सामने रामायण के प्राणधन भगवान् श्रीराम के राज्य-त्याग और वनवास का आदर्श उपस्थित था। प्रताप को बाल्यकाल में सदा यही बात खटकती रहती थी कि भारतभूमि विदेशियों की दासता की हथकड़ी और बेड़ी में सिसक रही है। वे स्वदेश की मुक्ति-योजना में सदा चिन्तनशील रहते थे। उनके मामा झालोड़ के राव अक्षयराज बालक प्रताप की पीठ पर सदा हाथ रखते थे। उन्हें आशंका थी कि ऐसा न हो कि प्रताप अन्तःपुर के षड्यन्त्रों के शिकार हो जायँ और इस प्रकार स्वाधीनता की पवित्र यज्ञवेदी का कार्य अधूरा ही रह जाय।
प्रताप बड़े साहसी बालक थे। स्वतन्त्रता और वीरता के भाव उनके रग-रग में भरे हुए थे। कभी-कभी बालक प्रताप घोड़े की पीठ से उतरकर बड़ी श्रद्धा और आदर से महाराणा कुम्भ के विजय स्तम्भ की परिक्रमा कर तथा मेवाड की पवित्र धूलि मस्तक पर लगाकर कहा करते थे कि मैंने वीर क्षत्राणी का दुग्ध पान किया है, मेरे रक्त में महाराणा साँगा का ओज प्रवाहित है; चित्तौड़ के विजय-स्तम्भ! मैं तुमसे स्वतन्त्रता और मातृ-भूमि-भक्ति की शपथ लेकर कहता हँ् विश्वास दिलाता हूँ कि तुम सदा उन्नत और सिसौदिया-गौरव के विजय-प्रतीक बने रहोगे। शत्रु तुम्हें अपने स्पर्श से मेरे रहते अपवित्र नहीं कर सकते।
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