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वीर बालक
वीर बालक
प्रकाशक :
भारतीय साहित्य संग्रह |
प्रकाशित वर्ष : 2016 |
पृष्ठ :94
मुखपृष्ठ :
ईपुस्तक
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पुस्तक क्रमांक : 9731
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आईएसबीएन :9781613012840 |
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वीर बालकों के साहसपूर्ण कृत्यों की मनोहारी कथाएँ
बर्बरीक के पूछने पर भगवान ने उसे महीसागर-संगम तीर्थ में जाकर देवर्षि नारद द्वारा वहाँ लायी गयी नवदुर्गाओं की आराधना का आदेश दिया। तदनन्तर तीन वर्ष तक आराधना करने पर देवियाँ प्रसन्न हुईं। उन्होंने प्रत्यक्ष दर्शन देकर उसे तीनों लोकों में जो बल किसी में नहीं, ऐसा दुर्लभ अतुलनीय बल प्राप्त करने का वरदान दिया। वरदान देकर देवियों ने कहा- 'पुत्र! तुम कुछ समय तक यहीं निवास करो। यहाँ एक विजय नाम के ब्राह्मण आयेंगे, उनके संग से तुम्हारा और अधिक कल्याण होगा।’
देवियों की आज्ञा मानकर बर्बरीक वहीं रहने लगा। कुछ दिन पीछे मगध देश के विजय नामक ब्राह्मण वहाँ आये। उन्होंने कुमारेश्वर आदि सात शिवलिंगों का पूजन किया और विद्या की सफलता के लिये बहुत दिनों तक देवियों की आराधना की। देवियों ने स्वप्न में उन्हें आदेश दिया- 'तुम सिद्ध माता के सामने आँगन में सम्पूर्ण विद्याओं की साधना करो। हमारा भक्त बर्बरीक तुम्हारी सहायता करेगा।’
विजय ने भीमसेन के पौत्र बर्बरीक से प्रातःकाल कहा - 'तुम निद्रारहित एवं पवित्र होकर देवी के स्तोत्र का पाठ करते हुए यहीं रहो; जिससे जब तक मैं विद्याओं का साधन करूँ, तब तक कोई विघ्न न हो।'
विजय अपने साधन में एकाग्रचित्त से लग गये और बर्बरीक सावधानी से रक्षा करता खड़ा रहा। विजय की साधना में विघ्न करनेवाले रेपलेन्द्र नामक महादानव तथा द्रुहद्रुहा नाम की राक्षसी का सहज ही संहार किया। तदनन्तर पाताल में जाकर नागों को पीड़ा देनेवाले 'पलासी' नामक भयानक असुरों को रौंदकर यमलोक भेज दिया।
उन असुरों के मारे जाने पर नागों के राजा वासुकि वहाँ आये। उन्होंने बर्बरीक की प्रशंसा की और प्रसन्न होकर उनसे वरदान माँगने को कहा। बर्बरीक ने वरदान में केवल यह माँगा- 'विजय निर्विघ्न साधन करके सिद्धि प्राप्त करें।'
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