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वापसी

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9730
आईएसबीएन :9781613015575

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सदाबहार गुलशन नन्दा का रोमांटिक उपन्यास

रुख़साना होटल से निकल कर बाहर सड़क पर आ रुकी। गुरनाम उसका पीछा करता हुआ पेड़ों के एक झुंड तले आ ठहरा और अंधेरे में घूर कर उसे देखने लगा जो थोड़ी दूर खड़ी बेचैनी से इधर-उधर देख रही थी, जैसे किसी की प्रतिक्षा कर रही हो। तभी गुरनाम ने देखा, उसने अचानक अपने मुंह में एक सिगरेट लगाया और लाइटर से उसे सुलगाने से पहले दो बार लाइटर जला कर बुझाया। उसी समय एक पुराने माडल की काले रंग की गाड़ी आकर उसके पास खड़ी हो गई। रुख़साना झट गाड़ी में बैठ गई और गाड़ी चल पड़ी।

गुरनाम गाड़ी के आगे बढ़ते ही लपक कर होटल के बाहर वाले भाग में आया और एक टैक्सी में बठकर ड्राइवर को काली कार का पीछा करने को कहा। टैक्सी वाले ने मामला समझना चाहा तो गुरनाम ने झट उसकी हथेली सौ के नोट से गरम कर दी। ड्राइवर ने सौ का नोट थामते ही टैक्सी की गति बढ़ा दी। कुछ दूर जाने के बाद गुरनाम ने ड्राईवर को अपनी गाड़ी की बत्तियां बुझा देने को कहा और उसे निर्देश दिया कि वह उस गाड़ी की टेल लाईट के सहारे उसका पीछा करे ताकि उस गाड़ी वालों को पीछा किये जाने का संदेह न होने पाए।

काली गाड़ी शहर की सीमा पार करके पीर बाबा के डेरे वाले टीले के पास आ पहुंची। गुरनाम ने अपनी टैक्सी काफ़ी पीछे रुकवा ली। उसने देखा, रुख़साना ने गाड़ी से उतर कर ड्राइवर को कुछ समझाया और वह गाड़ी आगे बढ़ाकर ले गया। रुख़साना टीले की ओर जाने वाली पगडंडी की ओर हो ली।

''खतरों से खेलने का शौक है तुम्हें?'' गुरनाम ने अचानक टैक्सी ड्राइवर से पूछा।

''कैसा खतरा सरदार जी?'' ड्राइवर ने घबरा कर पूछा।

''मैं उस छाया का पीछा कर रहा हूं...जब तक न लौटूं, यहीं मेरी प्रतीक्षा करोगे क्या?''

''क्यों नहीं बाबूजी-लेकिन वह पीर बाबा के डेरे की ओर जा रही है।''

''हां, मैं जानता हूं।'' गुरनाम ने कहा और तेजी से नीचे उतर आया। फिर अंधेरे का सहारा लिए रुख़साना के पीछे हो लिया। टैक्सी ड्राइवर अपने आप बड़बड़ाया-''यों पीछा करने से बीवी को थोड़े ही काबू में रखा जाता है। औरत बिगड़ जाए तो उसे दुनियां की कोई ताक़त नहीं संभाल सकती।''

वातावरण में सर्वत्र धुंध छाई हुई थी। जिससे अंधेरा कुछ अधिक ही बढ़ गया था। लेकिन उस अंधेरे में रुख़साना बेधड़क अपने जाने-पहचाने रास्ते पर बढ़ती चली जा रही थी। और यही घना अंधेरा उसका पीछा करने में गुरनाम की सहायता कर रहा था। गुरनाम अनुभव कर रहा था कि वह किसी बहुत बड़े खतरे के मुंह में फंसने जा रहा था। लेकिन अब यहां से लौट जाना भी बहुत बड़ी कायरता थी। उसे मालूम नहीं था कि आगे उसे किस खतरे का सामना करना होगा। लेकिन उसका कर्तव्य उसको बड़े-से-बड़े खतरे में कूद जाने के लिए पुकार रहा था।

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