ई-पुस्तकें >> वापसी वापसीगुलशन नन्दा
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सदाबहार गुलशन नन्दा का रोमांटिक उपन्यास
अपने सामने नाना प्रकार के स्वादिष्ट भोजन देखकर कैप्टन, रणजीत सलमा की प्रशंसा किये बग़ैर नहीं रह सका। काफी दिनों बाद आज उसे अच्छा खाना मिला था। लेकिन अचानक ही कुछ सोचकर उसकी आंखों में आंसू आते-आते रुक गये। रशीद ने उसकी भावनाओं को भांप लिया।
''क्यों कैप्टन, अचानक उदास क्यों हो गये?'' रशीद ने पूछा।
''यों ही, घर की याद आ गई।'' रणजीत ने बलपूर्वक मुस्कराने का प्रयत्न किया।
''इसे भी अपना ही घर समझो...एक दोस्त का घर।''
''दोस्त ही समझ कर तो यहां आया। एक खास कशिश थी जो मुझे यहां तक खींच ले आई, वर्ना दुश्मन के घर का नमक कौन खाता है।''
''अच्छा बिसमिल्ला कीजिए।'' सलमा ने उन दोनों की बातचीत लम्बी होते देखकर कहा।
रणजीत ने दृष्टि उठाकर सलमा की ओर देखा। जो अभी तक मेज़ पर खाने के डोंगे सजा रही थी। रणजीत ने कहा- ''भाभी आप हमारा साथ नहीं देंगी? आज आपकी शादी की सालगिरह में हम तीनों एक साथ खाते तो कितना अच्छा होता।''
''वन्डरफुल...।'' रशीद उसकी बात सुनकर उछल पड़ा- ''भई तुमने तो मेरे मुंह की बात छीन ली। अब तो सलमा को हमारे साथ बैठकर खाना ही पड़ेगा।''
सलमा ने बहाना बनाना चाहा तो रणजीत ने खाने से हाथ खींच लिया और बोला-''आप साथ नहीं खायेंगी तो मैं भी बिना खाये ही उठ जाऊंगा। मुझे देवर माना है तो मेरे साथ खाने में आपको झिझक नहीं होनी चाहिए।''
विवश होकर सलमा को भी साथ बैठना पड़ा। रणजीत तो जैसे खाने पर टूट पड़ा। हर ग्रास के साथ वह सलमा के बनाये हुए खाने की प्रशंसा कर रहा था। सलमा भी खुशी से खिल उठी।
''मुझे क्या मालम था कि आज ये आपको साथ ले आयेंगे।'' सलमा ने पुलाव की प्लेट रणजीत की ओर बढ़ाते हुए कहा-''वर्ना मैं दो-चार चीज़ें और तैयार कर देती।''
''इतना क्या कम है। सच पूछो भाभी, जो मज़ा इस खाने में है, वह बड़ी-से-बड़ी पार्टियों में भी कभी नहीं मिला। काश, मैं फिर कभी आपकी सालगिरह में शरीक हो सकता।'' रणजीत ने आत्मीयता भरे स्वर में कहा।
''कहां आप और कहां हम।'' सलमा ने ठंडी सांस भरी और दुःख भरे स्वर में बोली-''खुदा-खुदा करके सीज़ फायर हुआ तो जाकर जान में जान आई। हर वक़्त जान पर बनी हुई थी। दिन-रात तोपों के धमाके...हवाई जहाजों की गड़गड़ाहट और खतरे के सायरन की आवाज़...न जाने इन लोगों को क्या हो गया है।'' ''कुछ नहीं, इंसान अपने हक़ के लिए लड़ता है।''
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