ई-पुस्तकें >> वापसी वापसीगुलशन नन्दा
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सदाबहार गुलशन नन्दा का रोमांटिक उपन्यास
''कौन सा हक़...?'' सलमा ने भोलेपन से पूछा।
''जो अब तक उसे नहीं मिला...और शायद वह जानता भी नहीं कि उसका हक़ है क्या?'' रणजीत ने बोझिल आवाज़ में कहा।
रशीद ने विवाद को गम्भीर रूप धारण करते हुए देखा तो उसने दोनों की बात काटते हुए कहा-''बेहतर होगा, अगर हम थोड़ी देर के लिए अपने हक़ को भूलकर खाने के साथ इंसाफ करें।''
सलमा पति का संकेत समझ गई और बात का रुख बदलते हुए बोली-''कहिए क्या पैग़ाम दिया आपने अपने घरवालों के नाक?''
''बस ख़ैर-ख़ैरियत...।'' रणजीत ने ग्रास चबाते हुए उत्तर दिया।
''किसके नाम?''
''अपनी मां के नाम।''
''और आपके वालिद साहब...?''
''जब मैं मां की गोद में ही था, तभी मां को दुनियां में बेसहारा छोड़कर चले गये।''
''ओह! क्या हुआ था उन्हें?''
''पार्टीशन के वक़्त मार-धाड़ में मारे गये।''
''अरे कहां?''
''इसी सर ज़मीन पर, जिसे आप पाक़ कहते हैं।''
''ओह!'' सलमा ने एक लम्बी सांस ली और दुःख भरी आवाज़ में पूछा-''कितने भाई-बहन हैं आप?''
''बस अकेला हूं।''
''लेकिन आपने रेडियो के प्रोग्राम में मां के अलावा भी तो एक नाम लिया था।'' मेजर रशीद ने बात-चीत में रुचि लेते हुए पूछा।
''वह मेरी प्रेमिका है।''
''कहां रहती है?'' सलमा ने उत्सुकता से पूछा।
''दिल्ली में टेलिवीजन में काम करती हैं।''
''और आपकी मां?''
''कुलू वादी के पास मनाली गांव में।''
''क्या वह अकेली रहती हैं गांव में?''
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