ई-पुस्तकें >> वापसी वापसीगुलशन नन्दा
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सदाबहार गुलशन नन्दा का रोमांटिक उपन्यास
''आपने उन्हें 'इनवाइट' ही कब किया था?''
''अरे वाह...कमाल करती हो। तुम्हारे साथ तो उन्हें आना ही था। अपनों में भी कहीं फ़ारमेलिटीज़ बरती जाती हैं।'' रशीद खिसियाकर बोला।
पूनम उसकी खिसियाहट देखकर मुस्करा दी और जल्दी से बोली-''अरे नहीं...मैं तो मज़ाक कर रही थी। वास्तव में उन्हें पार्टियों इत्यादि में जाना अच्छा नहीं लगता।''
रशीद ने उसका हाथ अपने हाथ में ले लिया और उसके साथ अफ़सरों के जमघट में आ गया।
पूनम के आते ही पार्टी में जैसे नवजीवन फूंक गया हो। नशे में झूमते अफ़सरों ने प्रशंसा से उस परी जैसी सुंदर रमणी को देखा...और कुछ एक की पत्नियों ने अपने पतियों की भूखी नज़रों को ताड़ते हुए नाक-भौं चढ़ा ली। कर्नल चौधरी ने रशीद के उत्तम चनाव की प्रशंसा करते हुए आगे बढ़कर पूनम का हाथ थामा और स्टेज पर ले जाकर ऊंचे स्वर में, रणजीत की मंगेतर के रूप में सबसे उसका परिचय कराया। हाल तालियों के शोर से गूंज उठा।
लोगों से मिल चुकने के बाद पूनम जमघटे से थोड़ा अलग हटकर खड़ी हो गई। नशे की तरंग में कुछ अफ़सरों की बेवाकी के लिए रशीद ने उससे क्षमा मांगना चाहा तो वह मुस्कराकर बोली- ''क्षमा मांगने की क्या बात है-आप तो ऐसे कह रहे हैं जैसे मैं पहली बार ऐसी पार्टियों में सम्मिलित हुई हूं। याद नहीं, जब आप पहली बार मुझे पालम मैस वाली पार्टी में साथ ले गए थे?''
''तब की बात और थी।''
''क्यों?''
''तब मैं तुम्हें केवल एक प्रेमिका के रूप में देखता था।''
''और अब?''
''अब...अब...अब मैं तुम्हें अपने जीवन का एक अंग समझता हूं।''
रशीद की इस दर्शनमयी बात ने पूनम को क्षण-भर के लिए स्थिर कर दिया। वह ध्यान से उसके चेहरे की ओर देखती हुई सोचने लगी कि आज से पहले तो कभी उसने इतनी गंभीर बात नहीं कही थी।
वह कुछ कहना चाहती थी कि एक गरज़ते हुए कर्कश स्वर ने उनके बीच छाई हुई निस्तब्धता को झिंझोर कर रख दिया। यह गुरनाम की आवाज़ थी, जो जान और रुख़साना से किसी बात पर उलझ पड़ा था। वह जान का गिरेबान पकड़कर गुस्से में चिल्ला रहा था-''ओ लाट साहब के बच्चे... मैं तेरी ढिबरी टाइट कर दूंगा। मुझे बरस-दो बरस में बस एक ही बार गुरस्स्रा आता है...और जब गुस्सा आता है, तो मैं ख़ून कर देता हूं।''
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