ई-पुस्तकें >> वापसी वापसीगुलशन नन्दा
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सदाबहार गुलशन नन्दा का रोमांटिक उपन्यास
वह जान और रुख़साना को लेकर उधर चला आया, जहां वह गुरनाम को बैठा आया था। गुरनाम अब वहां अकेला नहीं था, बल्कि दो-चार अफ़सरों को घेरे अंट-शंट बहस कर रहा था। रशीद ने उसे अपनी ओर आकर्षित करते हुए जान और रुख़साना का परिचय कराया। गुरनाम बड़े तपाक से उन दोनों से मिला और जब रशीद ने उसे जान और रुख़साना के आपसी प्रेम-संबंध के बारे में बताया गुरनाम ने बड़े उत्साह से उन दोनों को बधाई दी और उनको अपने पास में बैठाकर उनके रिश्ते की खुशी में ज़ाम पिया। रशीद ने जान को आंख से कुछ संकेत किया औँर हंसते हुए बोला-''देखो...अब मेरा दोस्त तुम दोनों के हवाले है। इसकी ख़ातिर में कोई कमी न रहे।''
''चिंता मत करो। कैप्टन...तुम्हारा दोस्त हमारा दोस्त है।'' जान ने मुस्कराकर उत्तर दिया।
रशीद वहां से हटकर अफ़सरों के एक झुरमुट में जा मिला। तभी अचानक उसकी दृष्टि प्रवेश-द्वार की ओर उठ गई और वह चौंक पड़ा। पूनम द्वार में खड़ी चारों ओर दृष्टि दौड़ाकर उसे ढूंढ रही थी। उसकी सज-धज देखकर क्षणभर के लिए तो रशीद की आंखें चौंधिया गईं। इस समय पूनम वही सफेद रेशमी साड़ी पहने हुए थी जो आज ही रशीद ने उसे भेंट में दी थी। इस सुंदर साड़ी में बिजली के प्रकाश में, इस रंग-भरी सभा में वह सबसे सुंदर और आकर्षक लग रही थी, मानो उजले बर्फ से पंखों में आकाश से कोई अप्सरा उतर आई हो।
रशीद कुछ देर खड़ा एकटक उसके यौवन को निहारता रहा। यों तो उसने पूनम को कई बार देखा था किंतु हर बार उसे किसी दूसरे की प्रेमिका मानकर कभी गहराई से उसने दृष्टि नहीं थी...लेकिन आज उसका प्रलय ढाने वाला सौंदर्य देखकर वह अपने दिल पर नियंत्रण न रख सका। उसकी दृष्टि उसके सुंदर मुखड़े से फिसलती हुई, उसके शरीर की पूरी भौगोलिक रेखाओं को नापने लगी। तभी पूनम की निगाह उससे टकराई और वह चौंककर एकाएक सचेत हो गया। तेज़-तेज़ क़दमों से चलता हुआ वह उस तक पहुंचा और मुस्कराती आंखों से उसका स्वागत करता हुआ बोला-''मैं कब से तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहा हूं।''
''प्राय: तो मैं ही आपकी प्रतीक्षा करती थी...चलिए, आज यह श्रेय आप ही ले लीजिए।'' पूनम मुस्कान की बिजलियां गिराती हुई बोली।
''तुम्हारे लिए तो सरल-सी बात हुई और यहां एक-एक पल एक-एक बरस के बराबर बीता है।''
''चलिए...अब तो मैं आ गई...क्या खिला-पिला रहे हैं।''
''आओ...अंदर आओ...आंटी को नहीं लाईं?''
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