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ई-पुस्तकें >> वापसी वापसीगुलशन नन्दा
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सदाबहार गुलशन नन्दा का रोमांटिक उपन्यास
रशीद ने टैक्सी से झांककर देखा, पहाड़ी के आंचल में छोटे-छोटे सुन्दर बंगले बिखरे हुए थे। उसने टैक्सी वाले को वहीं रुकने के लिए कहा और किराया चुकाकर नीचे उतर पड़ा। फिर वह शाही चश्मे के टूरिस्ट लॉज की खोज में आगे चल पड़ा।
लॉज की दीवारों पर खुदे नम्बरों को पढ़ता हुआ वह नम्बर चार की ओर बढ़ने लगा। उसके दिल की धड़कनें बढ़ने लगीं। किसी अज्ञात डर से उसके माथे पर पसीने की बूंदें उभर आईं। विचारों में खोया वह वहां पहुंच गया। लॉज के अन्दर जाने से पहले वह एक पल के लिए रुका और उसने जेब से पूनम की तस्वीर निकालकर देखी। एक बार फिर यह विचार उसके मस्तिष्क में आया कि अगर पूनम के मन में उसके प्रति सन्देह उत्पन्न हो गया तो वह क्या करेगा? उसका शरीर कांप उठा।
दरवाज़े के पास पहुंचकर उसने दस्तक दी। एक कश्मीरी खान-सामा बाहर आया और इससे पहले कि वह उससे कुछ पूछता, वह स्वयं ही बोल उठा-''आप कप्तान साहब हैं न...कप्तान रणजीत?''
''हां।''
''मेम साहब तो कब से आपका इंतज़ार कर रही हैं।''
''कहां है पूनम?'' रशीद ने अंदर आकर थरथराती आवाज़ में पूछा।
''वह सामने बगीचे में।'' खानसामा ने उधर संकेत किया, जहां एक पेड़ के नीचे कुर्सी बिछाए एक सुन्दर लड़की बैठी स्वेटर बुन रही थी।
पूनम की तस्वीर को जीते-जागते रूप में देखकर उसका दिल धड़कने लगा। उसने खानसामा से नज़र मिलाई, जिसके चेहरे पर एक शरारत भरी मुस्कराहट छिपी हुई थी। रशीद झट पलटा और पूनम की ओर हो लिया।
पूनम के पास पहुंचकर वह ठिठककर सोचने लगा कि उसे किस नाम से पुकारे। पता नहीं, रणजीत उसको कैसे सम्बोधित करता था। मन-ही-मन यह निर्णय करके कि उसको 'पूनम' ही कहकर पुकारना उचित होगा, वह आगे बढ़ा। घास पर सूखे पत्तों में हल्की-सी चिरमिराहट उत्पन्न हुई और पूनम ने झट पलटकर देखा। रणजीत को सामने देखकर बेचैनी से वह कुर्सी से उठी और स्वेटर उसके हाथों से नीचे गिर पड़ा। रशीद ने झुककर स्वेटर को उठा लिया और पूनम की ओर बढ़ाता हुआ मुस्करा दिया। पूनम ने थर-थराते होंठों से पुकारा-''रणजीत!''
''हां पूनम...तुम्हारा रणजीत।'' रशीद ने अपने कोट का कालर ठीक करते हुए कहा।
''विश्वास नहीं हो रहा।'' वह थोड़ा पास आते हुए बोली।
''किस बात का?''
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