ई-पुस्तकें >> वापसी वापसीगुलशन नन्दा
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सदाबहार गुलशन नन्दा का रोमांटिक उपन्यास
रशीद चारपाई पर बैठता हुआ कालूराम से बोला-''अच्छा भैया...सामान रख दो...और हां, सुबह दो लीटर दूध लेकर आना।'' उसने कालूराम की मुट्ठी में दो रुपए रख दिए, जिन्हें पहले तो कालूराम ने लेने से इन्कार किया, लेकिन रशीद के आग्रह पर लेकर चला गया।
कालूराम के चले जाने के बाद रशीद ने पूरे घर का जायजा लिया और गौरी से बोला-''हर चीज़ वैसी ही है, जैसी मै छोड़ कर गया था।''
''और क्या भैया...मैंने तुम्हारी एक-एक चीज़ संभाल कर रखी है।''
''देखूं तो कैसे रखा है तुमने मेरी चीज़ों को?'' घर का इतिहास और भूगोल जानने का इससे सुन्दर और कौन सा अवसर हो सकता था। गौरी के साथ वह एक-एक कमरे में जाकर हर चीज़ को ध्यान-पूर्वक देखने लगा। रणजीत की पुस्तक़ें, उसके कालिज स्कूल में जीते हुए कप और दूसरी सब चीज़ें बडे सलीके से सजी रखी थी। रशीद ने गौरी के सलीके की प्रशंसा करते हुए कहा- ''गौरी! तुमने हर चीज़ किस सुन्दर ढंग से वैसी की वैसी रखी है। तुम बहुत सयानी लड़की हो।''
''हां भैया, तुम्हारी सब चीज़ें तो वैसी ही हैं, लेकिन मां जी के चेहरे की खिलन को मैं वैसे ही बचा कर न रख सकी। लड़ाई का एक-एक दिन उनके चेहरे की रंगत छीनता चला गया-और फिर जब तुम क़ैद हो गए तो उनका चेहरा जैसे बिल्कुल वीरान हो गया।''
''घबराओ नहीं...अब मैं आ गया हूं...मां के चेहरे की शिकन फिर लौट आएगी।''
''अब तो वह एक ही चीज़ से लौट सकती है।'' गौरी ने शरारत से मुस्कराकर कहा।
''किस चीज़ से?''
''बस, अब पूनम भाभी को उनकी बहू बनाकर ले आओ। मां जी के चेहरे पर ही क्या, सारे घर में बहार आ जाएगी।''
तभी गौरी की दृष्टि दरवाजे से बाहर एक स्वस्थ, परिश्रमी वृद्धा पर पड़ी और उसने झट रशीद का हाथ थामकर उसे अलमारी को आड़ में करते हुए धीरे से। कहा-''भैया...इधर छिप जाओ।''
''क्यों?'' रशीद ने आश्चर्य से कहा और फिर मां की आवाज़ को सुना जो शायद बाहर किसी को डांट रही थीं।
''छिप जाओ न भैया...ज़रा मज़ा आएगा।''
रशीद झट अलमारी की ओट में हो गया। मां ने घर में दाखिल होते हए कहा-''अरी गौरी तू यहां खड़ी-खड़ी क्या कर रही है। अभी तक चूल्हा भी नहीं जलाया।
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