ई-पुस्तकें >> वापसी वापसीगुलशन नन्दा
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सदाबहार गुलशन नन्दा का रोमांटिक उपन्यास
''देशद्रोही था नहीं, लेकिन उसे बना दिया गया है।''
''किसने बनाया है?''
''दुश्मनों ने।''
''मुझे तो विश्वास नहीं होता।''
''तो क्या कहता है तुम्हारा विश्वास?''
''देश से द्रोह करने से पहले ही वह अपनी जान दे देंगे।''
''तुम्हारा विश्वास ग़लत है डीयर...तुम्हारे प्यार को धोखा दिया गया है।''
''कैसा धोखा?''
''जिसे तुम रणजीत समझ रही हो, वह रणजीत नहीं है।''
''क्या बक रही हो तुम?'' पूनम ने लगभग चीख़ते हुए कहा और फिर तेज़ नज़रों से उसे घूरते हुए बोली-''क्या इस समय भी तुम नशे में हो?''
''नहीं पूनम...कसम ले लो जो सुबह से एक बूंद भी चखी हो...मैं वह हक़ीक़त बता रही हूं जो तुम्हें नहीं मालूम...लेकिन मैं उसके बारे में सब कुछ जानती हूं।''
''तो कौन है वह?'' पूनम ने बिफरी हुई आवाज़ में पूछा।
''तुम्हारे प्रेमी का हमशकल रशीद... मेजर रशीद जो रणजीत के भेष में हिंदुस्तान में घुसकर पाकिस्तान के लिए जासूसी कर रहा है।''
''तो रणजीत कहां है?'' पूनम ने घबराकर पूछा।
''या तो दुश्मनों की क़ैद में है या मारा जा चुका होगा।''
''नहीं...।'' पूनम के मुंह से अनायास एक चीख़ निकल गई और आस-पास बैठ लोग चौंककर आश्चर्य से उधर देखने लगे।
रुख़साना की बात सुनकर पूनम के दिल में जैसे किसी ने चाकू घोंप दिया हो। कुछ क्षण के लिए उसके दिल की हरक़त जैसे रुक गई हो और मस्तिष्क में आंधिया-सी चलने लगीं...फिर धीरे-धीरे उसके सामने कल्पना-पट पर रशीद से उसकी मुलाकातों की तस्वीरें उभरने लगीं। कितनी ही असाधारण बातें...उसकी रणजीत से थोड़ी भिन्न भर्राई हुई आवाज़, पूनम से पहली भेंट में उसका अनोखा उखड़ा-उखड़ापन...देवी के मंदिर में जाते हुए उसकी हिचकिचाहट, रुख़साना के साथ रहस्यमयी मित्रता...'अल्लाह' लिखे हुए लाकिट और 'ओम्' लिखे हुए लाकिट की अदला-बदली पर उसका बिगड़ना यह सब याद आते ही पूनम को रुख़साना की बात में कुछ सच्चाई दिखाई देने लगी। उसके दिल में जैसे हलचल सी मच गई...मस्तिष्क की नसें जैसे फटने लगीं। अब वहां बैठना उसके लिए मुश्किल हो गया। एक झटके के साथ कुर्सी छोड़कर वह उठ खड़ी हुई और रुख़साना से बिना कुछ कहे बाहर की ओर लपकी। रुख़साना ने उसे पुकार कर रोकना चाहा, किन्तु पूनम ने एक नहीं सुनी और पलक झपकने में होटल से बाहर निकल गई।
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