ई-पुस्तकें >> वापसी वापसीगुलशन नन्दा
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सदाबहार गुलशन नन्दा का रोमांटिक उपन्यास
''ज़रा जल्दी में हूं।''
''लेकिन रणजीत मिल जाता तो तुम जल्दी में न होतीं...।'' उसने मुस्कराकर कहा और पूनम को हाथ से पकड़कर खींचती हुई डाइनिंग हाल में ले गई। कोने की एक मेज़ पर बैठते हुए उसने पूनम से नाश्ते के लिए पूछा। पूनम के इंकार करने पर उसने अपने लिए लंबे-चौड़े नाश्ते का तथा पूनम के लिए एक कप 'काफी' का आर्डर दिया और फिर उससे सम्बोधित होकर बोली-''सच कितना कड़ुआ होता है...पूनम डीयर!''
''हां रुख़साना...ओह सॉरी...लिली।''
''नहीं, नहीं...तुम मुझे रुख़साना ही कहो। लिली तो रात के अंधेरों के साथ ही मर जाती है।'' रुख़साना ने कुछ दार्शनिक ढंग से कहा।
''तुम रणजीत को कब से जानती हो?'' पूनम ने अचानक उससे पूछा।
''जब से वह पाकिस्तान से लौटा है।''
''क्या, वह भी जानते हैं कि तुम पाकिस्तान के लिए जासूसी करती थीं?''
रुख़साना पूनम का प्रश्न सुनकर कुछ सोच में पड़ गई और थोड़ी देर मौन रहकर बोली-
''सवाल बड़ा टेढ़ा है...डीयर!''
''लेकिन जवाब सीधा चाहिए मुझे।''
''क्यों?''
''शायद तुम्हारे इस उत्तर पर मेरे जीवन का बहुत कुछ निर्भर हो।''
''मैंने कुछ देर पहले कहा था न कि सच बड़ा कड़ुआ होता है...सुनोगी तो बौखला जाओगी।''
पूनम कुछ कहना ही चाहती थी कि बैरा नाश्ते की ट्रे लिए आ गया। रुख़साना ने काफी का कप पूनम की ओर सरका दिया और स्वयं चुपचाप नाश्ता करने लगी।
''तुम कुछ कहने जा रही थीं।'' उसे खामोश देखकर पूनम ने कहा।
''हां...मैं यह कहने वाली थी कि...'' वह कुछ कहते-कहते रुक गई और फिर आमलेट का एक टुकड़ा परौठे के साथ मुंह में रखकर चबाती हुई पूनम की आंखों में आंखें डालकर बोली-''अगर मैं कहूं कि तुम्हारा रणजीत भी हमारा साथी है तो...?''
पूनम जो काफी का प्याला हाथ में उठाकर घूंट लेते-लेते रुक गई थी, उसकी बात सुनकर यों उछल पड़ी, जैसे उसे किसी बिच्छू ने डंक मार दिया हो और काफी का प्याला उसके हाथ से छूटकर मेज़ पर गिर पड़ा। काफी के छींटे उसकी साड़ी पर बिखर गए। रुख़साना ने झट उठकर नैपकिन से उसकी साड़ी साफ़ की और फिर जब उसने पूनम से दृष्टि मिलाई तो पूनम उसे अविश्वास की दृष्टि से घूर रही थी। कुछ देर तक इसी भाव में वह उसे घूरती रही और फिर थोड़ा चिल्लाकर बोली-''यह झूठ है...वह कभी देशद्रोही नहीं हो सकते।''
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