लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> वापसी

वापसी

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9730
आईएसबीएन :9781613015575

Like this Hindi book 5 पाठकों को प्रिय

363 पाठक हैं

सदाबहार गुलशन नन्दा का रोमांटिक उपन्यास

''आज सुबह की फ्लाइट से। कल शाम को मनाली जा रहा हूं। सोचा तुम्हें साथ ले चलूं।''

''जी तो मेरा भी चाह रहा है मां से मिलने को, लेकिन डैडी की हालत तो देख रहे हैं आप।''

''तुमने तो वचन दिया था कि तुम मेरे साथ चलोगी...मां के पास।''

''ऐसा कीजिए...आप मनाली चलिए...मैं डैडी की देख भाल के लिए कमला आंटी को यहां बुला लेती हूं। उनके आते ही चंद दिन के लिए आ जाऊंगी।''

पूनम की बात सुनकर रशीद का मन बुझ गया। वह चाहता था कि पूनम उसके साथ होगी तो मां का ध्यान कुछ उसकी ओर बट जाएगा। वर्ना हो सकता है कि अनजाने में उसकी किसी हरकत से मां के मन में कोई सन्देह न उत्पन्न हो जाए। वह इस प्रकार का कोई भी अवसर नहीं आने देना चाहता था। इसी विचार से वह पूनम को साथ चलने का आग्रह कर रहा था, किन्तु उसकी विवशता को ध्यान करके चुप रह गया।

''आप ठहरे कहां हैं?'' पूनम ने उनकी विचारधारा भंग करते हुए पूछा।

''होटल अकबर में।''

''होटल में क्यों? मेरे घर को पराया समझते हैं क्या? चलिए अभी सामान लेकर आइए।''

''अरे...एक रात की तो बात है। कल तो चला ही जाऊंगा और फिर शादी से पहले यहां रुकना भी तो ठीक नहीं।'' रशीद ने कुछ मुस्कराकर अंतिम वाक्य कहा तो पूनम शरमा गई।

तभी अचानक रशीद की दृष्टि सामने दीवार पर फ्रेम में जड़ी एक तस्वीर पर पड़ गई। वह वापस जाकर ध्यानपूर्वक उस तस्वीर को देखने लगा। रणजीत और पूनम बाहों में बाहें डाले किसी होटल की पार्टी में नाच रहे थे।

''क्या देख रहे हो?'' पूनम ने पास आकर पूछा।

''अपनी जवानी की गुस्ताखियां।''

''अब क्या बूढ़े हो गए हो?'' पूनम ने शरारत से पूछा।

''जब से दुश्मन की क़ैद से मुक्त हुआ हूं, दिल कुछ बुझ-सा गया है। सब इच्छाएं, कामनाएं जैसे दम तोड़ चुकी हैं। न हंसने को मन चाहता है, न मज़ाक करने को।''

''शादी के बाद भी आपने मुझसे यही रूखा व्यवहार किया तो मैं घुट-घुट कर मर जाऊंगी।''

''मरें तुम्हारे दुश्मन...! जब तुम्हारा साथ मिलेगा तो सोई हुई कामनाएं अपने आप ही फिर जाग उठेंगी।''

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book