लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> उर्वशी

उर्वशी

रामधारी सिंह दिनकर

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :207
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9729
आईएसबीएन :9781613013434

Like this Hindi book 7 पाठकों को प्रिय

205 पाठक हैं

राजा पुरुरवा और अप्सरा उर्वशी की प्रणय गाथा


पर, शोणित दौड़ता जिधर को, उस अभिप्रेत दिशा में,
निश्चय ही, कोई प्रसून यौवानोत्फुल्ल सौरभ से,
विकल-व्यग्र मधुकर को रस-आमंत्रण भेज रहा है।
या वासकसज्जा कोई फूलों के कुञ्ज-भवन में,
पथ जोहती हुई, संकेतस्थल सूचित करने को,
खड़ी समुत्सुक पद्म्राग्मानी-नूपुर बजा रही है।
 
या कोई रूपसी उन्मना बैठी जाग रही है,
प्रणय-सेज पर, क्षितिज-पास, विद्रुम की अरुणाई में,
सिर की ओर चन्द्रमय मंगल-निद्राकलश सजा कर।

श्रुतिपट पर उत्तप्त श्वास का स्पर्श और अधरों पर,
रसना की गुदगुदी, अदीपित निश के अन्धियाले में,
रस-माती, भटकती ऊंगलियों का संचरण त्वचा पर;
इस निगूढ़ कूजन का आशय बुद्धि समझ सकती है?
 
उसे समझना रक्त, एक कम्पन जिसमें उठता है,
किसी डूब की फुनगी से औचक छू जाने पर भी,
बुद्धि बहुत करती बखान सागर-तट की सिकता का,
पर, तरंग-चुम्बित सैकत में कितनी कोमलता है,
इसे जानती केवल सिहरित त्वचा नग्न चरणों की।

तुम निरुपते हो विराग जिसकी भीषिका सुनाकर,
मेरे लिये सत्य की वानी वही तप्त शोनित है।
पढो रक्त की भाषा को, विश्वास करो इस लिपि का;
यह भाषा, यह लिपि मानस को कभी न भरमायेगी,
छली बुद्धि की भांति, जिसे सुख-दुख से भरे भुवन में,
पाप दीखता वहाँ जहाँ सुन्दरता हुलस रही है,
और पुष्प-चय वहाँ जहाँ कंकाल, कुलिश, कांटे हैं।

पुरुरवा
द्वन्द्व शूलते जिसे, सत्य ही, वह जन अभी मनुज है,
देवी वह जिसके मन में कोई संघर्ष नहीं है।
तब भी, मनुज जन्म से है लोकोत्तर, दिव्य तुम्हीं-सा,
मटमैली, खर, चटुल धार निर्मल, प्रशांत उद्गम की।

रक्त बुद्धि से अधिक बली है, अधिक समर्थ, तभी तो,
निज उद्गम की ओर सहज हम लौट नहीं पाते हैं।
पहुंच नहीं पाते उस अव्यय, एक, पूर्ण सविता तक,
खोए हुए अचेत माधवी किरणों के कलरव में।

ये किरणें, ये फूल, किंतु, अप्रतिम सोपान नहीं हैं
उठना होगा बहुत दूर ऊपर इनके तारों पर,
स्यात, ऊर्ध्व उस अम्बर तक जिसकी ऊंचाई पर से,
यह मृत्तिका-विहार दिव्य किरणों का हीन लगेगा।

दाह मात्र ही नहीं, प्रेम होता है अमृत-शिखा भी,
नारी जब देखती पुरुष की इच्छा-भरे नयन को,
नहीं जगाती है केवल उद्वेलन, अनल रुधिर में,
मन में किसी कांत कवि को भी जन्म दिया करती है।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: mxx

Filename: partials/footer.php

Line Number: 7

hellothai