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			 ई-पुस्तकें >> उर्वशी उर्वशीरामधारी सिंह दिनकर
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राजा पुरुरवा और अप्सरा उर्वशी की प्रणय गाथा
 निपुणिका
 सुन लिया सन्देश आर्ये ?
 
 औशीनरी
 हाँ, अनोखी साधना है,
 अप्सरा के संग रमना ईश की आराधना है !
 पुत्र पाने के लिए बिहरा करें वे कुञ्ज-वन में,
 और मैं आराधना करती रहूं सूने भवन में।
 
 कितना विलक्षण न्याय है !
 कोई न पास उपाय है !
 अवलम्ब है सबको, मगर, नारी बहुत असहाय है।
 
 दुःख-दर्द जतलाओ नहीं,
 मन की व्यथा गाओ नहीं,
 नारी ! उठे जो हूक मन में, जीभ पर लाओ नहीं।
 
 तब भी मरुत अनुकूल हों,
 मुझको मिलें, जो शूल हों,
 प्रियतम जहां भी हों, बिछे सर्वत्र पथ में फूल हों।
						
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