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उर्वशी

रामधारी सिंह दिनकर

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :207
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9729
आईएसबीएन :9781613013434

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राजा पुरुरवा और अप्सरा उर्वशी की प्रणय गाथा


निपुणिका
सुन लिया सन्देश आर्ये ?

औशीनरी
हाँ, अनोखी साधना है,
अप्सरा के संग रमना ईश की आराधना है !
पुत्र पाने के लिए बिहरा करें वे कुञ्ज-वन में,
और मैं आराधना करती रहूं सूने भवन में।

कितना विलक्षण न्याय है !
कोई न पास उपाय है !
अवलम्ब है सबको, मगर, नारी बहुत असहाय है।

दुःख-दर्द जतलाओ नहीं,
मन की व्यथा गाओ नहीं,
नारी ! उठे जो हूक मन में, जीभ पर लाओ नहीं।

तब भी मरुत अनुकूल हों,
मुझको मिलें, जो शूल हों,
प्रियतम जहां भी हों, बिछे सर्वत्र पथ में फूल हों।

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