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तिरंगा हाउस

मधुकांत

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :182
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9728
आईएसबीएन :9781613016022

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समकालीन कहानी संग्रह

प्रदेश की राजधानी में स्वास्थ्य अधिकारियों की बैठक में सख्त फैसले लिए गए कि प्रोजैक्ट को हर अवस्था में पूरा करना पड़ेगा, क्योंकि इन दवाईयों को कम्पनी से खरीदा जा चुका है, पेमैन्ट हो चुकी है, गोलियां सब स्कूलों में भेजी जा चुकी हैं। एक अधिकारी ने मन ही मन कहा- ‘कमीशन खाया जा चुका है।’ यदि बच्चों को गोलियां न खिलाई तो सब एक्सपायर हो जाएंगी। सरकार की बदनामी होगी, विपक्ष वाले जीने नहीं देगें... इसलिए शिक्षा अधिकारियों को गोलियाँ खिलवाने का शख्त आदेश जारी करवाओ।

एक सप्ताह से स्कूल की पढ़ाई बाधित हो रही थी। आठ-दस प्रतिशत छात्र स्कूल में आते, घूम-घाम कर चले जाते। मुख्याध्यापक को चिंता हुई, उसने अपनी सूझबूझ से गांव में मुनादी करवा दी कि किसी भी बच्चे को गोली नहीं खिलाई जाएगी। इसलिए सभी बच्चे पढ़ने के लिए स्कूल में उपस्थित हों। सात दिन लगातार अनुपस्थित रहने पर नाम काट दिया जाएगा। सोमवार को सभी छात्र विधिवत स्कूल में उपस्थित हो गए, परन्तु आपस में खुसर-फुसर आयरन की गोलियों पर ही कर रहे थे।

स्कूल अच्छी प्रकार से चालू भी नहीं हो पाया था कि ऊपर से सख्त आदेश का फैक्स निकलकर मुख्याध्यापक की टेबल पर आ गया। फैक्स के साथ बच्चों को समझाने के लिए आयरन की गोली खाने के लाभ भी लिखे थे-

नीली गोली न खाने से बच्चों का मानसिक विकास नहीं होगा, स्मरण शक्त्ति कमजोर रह जाएगी, बच्चे शरीर से कमजोर होंगे, बीमारियों से लड़ने की क्षमता कम होगी, बार-बार थकावट होगी, खेल कूद में हिस्सा नहीं ले पाएंगे तथा काम करने में उत्साह की कमी आयेगी। फैक्स पढ़ने, समझने तक छुट्टी का समय हो गया। मुख्याध्यापक ने तुरंत सभी अध्यापकों की आवश्यक बैठक बुला ली। बच्चों की छुट्टी करके सभी अध्यापक बैठक में आ गए। मुख्याध्यापक महोदय ने ऊपर से आया आदेश सभी के सम्मुख पढ़कर सुनाया। सभी अध्यापकों ने चिंता रखी कि गोलियां खिलाने का प्रयास किया गया तो बच्चे फिर स्कूल में नहीं आएंगे।

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