ई-पुस्तकें >> तिरंगा हाउस तिरंगा हाउसमधुकांत
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समकालीन कहानी संग्रह
दायीं ओर के पिछले कोने में दो बच्चे आपस में फुसफुसा रहे थे। उन्होंने इशारे-इशारे में कुछ योजना बनाई। जब उनका नम्बर आया तो दोनों से सहजता से पानी के साथ गोली गटक ली। अभी अगले बच्चों को आयरन की गोली खिलाई गयी थी अचानक एक छात्र चिल्लाया, ‘सर पेट में दर्द’ ..... वह अपना पेट पकड़कर जोर-जोर से चिल्लाने लगा- हाय री माँ मर गया.... तभी उसका पड़ोसी छात्र उल्टी को उगलता हुआ आगे आया... सारी कक्षा में सन्नाटा छा गया। हैडमास्टर, पी.टी.आई और चपरासी भी घबरा गए। दोनों छात्र बैंचों के बीच में लेट गए। दवा खिलाना बंद कर दिया। बच्चों की सहायता से दोनों को उठवाकर हैडमास्टर के कमरे में लाकर लेटाया गया। एक अध्यापक ने सरकारी होस्पीटल में फोन कर दिया, कुछ समय में ही एम्बुलैंस आ गयी। मुख्य डाक्टर दोनों बच्चों को एम्बुलैंस में होस्पीटल ले गये। सारे गांव में खबर आग की तरह फैल गयी। कई पत्रकार भी खबर लेने वहाँ एकत्रित हो गए। सारे बच्चों की छुट्टी कर दी गई।
होस्पीटल से लौटते हुए पी.टी.आई. ने कहा- हैडमास्टर साहब मुझे तो दोनों छात्रों की शरारत लगती है। होस्पीटल में जाते ही एकदम ठीक हो गए।
आपकी बात ठीक हो सकती है दरियाव सिंह जी परन्तु हम लोग रिस्क तो नहीं उठा सकते। कल को कुछ हो जाए तो लेने के देने पड़ जाएं.........।
बात तो सही है जी, मास्टरी करना बड़ा मुश्किल हो गया है- चलो कल देखते हैं, कहते हुए दरियाव सिंह अपने घर की ओर मुड़ गए।
आयरन की गोलियों के डर से अगले दिन दस प्रतिशत बच्चे स्कूल में आए। अखबारों में, टी.वी. चैनलों में इस खबर से गांव चर्चा में आ गया। बी.ई.ओ. डी.ई.ओ का आकस्मिक दौरा होने लगा। टी.वी. चैनलों पर प्रतिदिन किसी न किसी गांव के आयरन की गोली खाने से बीमार बच्चे होने की खबर आने लगी। शिक्षा विभाग, स्वास्थ्य विभाग चिन्ता में डूब गया। स्कूलों में भय का वातावरण भर गया, अधिकारियों की गोष्टियाँ होने लगीं।
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