ई-पुस्तकें >> तिरंगा हाउस तिरंगा हाउसमधुकांत
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समकालीन कहानी संग्रह
कम्प्यूटर की आँख
मिस्टर रमन अग्रवाल लगभग तीन वर्ष बाद अपनी कम्प्यूटर लैब से बाहर आया। सारी रात वह सोया भी नहीं था। फिर भी उसका चेहरा एक अभूतपूर्व सफलता से दैदिप्यमान हो रहा था। उनके पांव जमीन पर नहीं पड़ रहे थे। तीन वर्षों से वे अपनी खोज में इस प्रकार डूबे थे कि घरवाले उसे सनकी समझने लगे और बाहर के लोग पागल। उनकी बढ़ी हुई दाढ़ी, अस्त व्यस्त कपड़े को देखकर तो ऐसा सोचा भी जा सकता है परन्तु उनकी आंखों में झांककर देखा जाए तो एक गहरी खोज की तलाश, कुछ करने की ललक से चमकती रहती थी। खाने पीने और सोने के अतिरिक्त अधिकांश समय उसका कम्प्यूटर लैब में व्यतीत होता था।
उसने घड़ी की ओर देखा। सुबह के छ: बजे हैं। घर में सब अपने अपने कमरे में सो रहे हैं। किसे जगाए..... किसे बताए.... कि जिस व्यक्ति को आप सनकी और पागल समझते थे उसने बहुत बड़ा आविष्कार कर लिया है। अब वह कम्प्यूटर के द्वारा सबके दिमाग की बात जान सकता है.... उनके मन में क्या चल रहा है, सब कुछ पता लगा सकता है।
इस आविष्कार से दोहरा व्यक्तित्व जीने वाले लोगों का पर्दाफाश हो जाएगा। किसी भी चोर, अपराधी, देशद्रोही, दोगले झूठे व्यक्ति को पकड़ना आसान हो जाएगा। अपने मोबाइल को चालू करके उसके सामने चले जाओ, उनके मन की एक एक परत खुलकर कम्प्यूटर में आ जायेगी। अपने मोबाइल को ऊपर हाथ में उठाकर वह नाचने लगा।
अचानक आए विचार से वह चौंक गया। अभी तो उसने अपने आविष्कार का लोगों पर परीक्षण भी नहीं किया। किसी को बता दिया तो वह अपने दिमाग की बातों को बंद रखेगा। मन और दिमाग में सोचना ही बंद कर देगा। सच्चाई सामने ही नहीं आयेगी और यदि किसी ने मेरे फार्मूले को चुरा लिया तो मेरी वर्षों की साधना बेकार हो जाएगी। अभी कुछ दिन चुपचाप लोगों पर परीक्षण करना चाहिए- सोचकर वह अपनी लैब में लौट आया और आराम से सोफे पर लेटकर सिगरेट पीने लगा।
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