ई-पुस्तकें >> श्रीगणेशचालीसा श्रीगणेशचालीसाराम सुन्दर दास
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गणेश स्तुति
लखि अति आनंद मंगल साजा।
देखन भी आए शनि राजा।।21
निज अवगुण गुनि शनि मन माहीं।
बालक देखन चाहत नाहीं।।22
गिरिजा कछु मन भेद बढ़ायो।
उत्सव मोर न शनि तुहि भायो।।23
कहन लगे शनि मन सकुचाई।
का करिहौ शिशु मोहि दिखाई।।24
नहीं विश्वास उमा उर भयऊ।
शनि सों बालक देखन कह्यऊ।।25
पड़तहिं शनि दृगकोण प्रकाशा।
बालक शिर उड़ि गयो अकाशा।।26
गिरजा गिरीं विकल ह्वै धरणी।
सो दुख दशा गयो नहिं वरनी।।27
हाहाकार मच्यो कैलाशा।
शनि कीन्हों लखि सुत को नाशा।।28
तुरत गरुड़ चढ़ि विष्णु सिधाए।
काटि चक्र सो गजशिर लाये।।29
बालक के धड़ ऊपर धारयो।
प्राण मंत्र पढ़ शंकर डारयो।।30
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