ई-पुस्तकें >> संभाल कर रखना संभाल कर रखनाराजेन्द्र तिवारी
|
4 पाठकों को प्रिय 258 पाठक हैं |
मन को छूने वाली ग़ज़लों का संग्रह
30
मयकदे में रही सुब्ह से शाम तक
मयकदे में रही सुब्ह से शाम तक।
प्यास अपनी न पहुँची मगर जाम तक।।
किसको फ़ुर्सत सुने दास्तां दर्द की,
ये कहानी न पहुँचेगी अंजाम तक।
वो मेरी ख़ैरियत को परेशान हैं,
जो नहीं जानते हैं मेरा नाम तक।
उनका पैग़ाम लेकर न आया कोई,
यूँ तो आये कबूतर मेरे बाम तक।
उसको ‘राजेन्द्र’ भूला हुआ मत कहो,
वो पहुँच ही गया अपने घर शाम तक।
|