ई-पुस्तकें >> संभाल कर रखना संभाल कर रखनाराजेन्द्र तिवारी
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मन को छूने वाली ग़ज़लों का संग्रह
ख़ुद को पहचानना चाहता है अगर
आईने पर बहुत गर्द है साफ़ कर
जब से मन उसकी धुन में मगन हो गया
अपनी नज़रों में सहरा चमन हो गया
बेकार के झगड़े हैं बात अपनी ख़ुशी की है
मन्दिर भी उसी का है मस्जिद भी उसी की
डर इतना ज़िन्दगी का दिल में उतर गया है
बस आदमी है ज़िन्दा अहसास मर गया है
घबरा के नाउम्मीदी का दामन न थाम लें
थोड़े दिनों की बात है हिम्मत से काम लें
तुम्हें तन्हा भटकने को सफ़र में छोड़ दें कैसे
तुम्हारे साथ इक रि’ता है आख़्िार तोड़ दें कैसे
न हम शिकवा करें तुमसे न तुम हमसे गिला करना
चलो फिर से शुरू कर दें ब ज़रिए ख़त मिला करना
कहाँ पर कौन प्यासा है उन्हें इससे गरज क्या है
ये मर्ज़ी है घटाओं की, जहाँ चाहें वहाँ बरसें
छलकती दिल में है आँखों से बह निकलती है
ख़ुशी हर इक से सम्हाले नहीं सम्हलती है
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