ई-पुस्तकें >> संभाल कर रखना संभाल कर रखनाराजेन्द्र तिवारी
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मन को छूने वाली ग़ज़लों का संग्रह
कभी-कभी
ये माना, मेरी कोई हस्ती नहीं है
मगर ज़िन्दगी इतनी सस्ती नहीं है
जब से वो अजनबी हो गया
लम्हा-लम्हा सदी हो गया
कोई रिश्ता न नाता रहा
वो मगर याद आता रहा
ये भटकना ही काम आयेगा
इक न इक दिन मुकाम आयेगा
आईने से बैठ कर बातें करें
आइए ख़ुद से मुलाक़ातें करें
दोस्ती जब भी आज़माई है
बाख़ुदा हमने चोट खाई है
है काम दुनिया का पत्थर उछालते रहना
हमारा काम है दरपन सम्हालते रहना
मीज़ान पे क्या जाने वह कितनी सही उतरी
जो दिल से सदा निकली लफ़्ज़ों में वही उतरी
अपने दरम्यान ये दूरी नहीं अच्छी लगती
कोई तस्वीर अधूरी नहीं अच्छी लगती
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