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रामप्रसाद बिस्मिल की आत्मकथा

रामप्रसाद बिस्मिल

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :216
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9718
आईएसबीएन :9781613012826

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प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी बिस्मिल जी की आत्मकथा

मच्छर अपनी मधुर ध्वनि रात भर सुनाया करते हैं। बड़े प्रयत्नन से रात्रि में तीन या चार घण्टे निद्रा आती है, किसी-किसी दिन एक-दो घण्टे ही सोकर निर्वाह करना पड़ता है। मिट्टी के पात्रों में भोजन दिया जाता है। ओढ़ने बिछाने के दो कम्बल हैं। बड़े त्याग का जीवन है। साधना के सब साधन एकत्रित हैं। प्रत्येक क्षण शिक्षा दे रहा है - अन्तिम समय के लिए तैयार हो जाओ, परमात्मा का भजन करो।

मुझे तो इस कोठरी में बड़ा आनन्द आ रहा है। मेरी इच्छा थी कि किसी साधु की गुफा पर कुछ दिन निवास करके योगाभ्यास किया जाता। अन्तिम समय वह इच्छा भी पूर्ण हो गई। साधु की गुफा न मिली तो क्या, साधना की गुफा तो मिल गई। इसी कोठरी में यह सुयोग प्राप्तछ हो गया कि अपनी कुछ अन्तिम बात लिखकर देशवासियों को अर्पण कर दूं। सम्भव है कि मेरे जीवन के अध्ययन से किसी आत्मा का भला हो जाए। बड़ी कठिनता से यह शुभ अवसर प्राप्त  हुआ।

महसूस हो  रहे हैं  बादे फना  के  झोंके
खुलने लगे हैं मुझ पर असरार जिन्दगी के
बारे  अलम  उठाया  रंगे  निशात  देता
आये नहीं  हैं  यूं  ही अन्दाज बेहिसी के

वफा पर दिल को सदके जान को  नजरे जफ़ा कर  दे
मुहब्बत में यह लाजिम है कि जो कुछ हो फिदा कर दे।

अब तो यही इच्छा है -

बहे बहरे फ़ना में जल्द या रब लाश 'बिस्मिल' की
कि भूखी मछलियां हैं जौहरे शमशीर कातिल की,
समझकर  कूँकना  इसकी  ज़रा ऐ दागे नाकामी
बहुत से घर भी हैं आबाद इस उजड़े हुए दिल से।

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