ई-पुस्तकें >> रामप्रसाद बिस्मिल की आत्मकथा रामप्रसाद बिस्मिल की आत्मकथारामप्रसाद बिस्मिल
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प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी बिस्मिल जी की आत्मकथा
फांसी की कोठरी
अन्तिम समय निकट है। दो फांसी की सजाएं सिर पर झूल रही हैं। पुलिस को साधारण जीवन में और समाचारपत्रों तथा पत्रिकाओं में खूब जी भर के कोसा है।
खुली अदालत में जज साहब, खुफिया पुलिस के अफसर, मजिस्ट्रेट, सरकारी वकील तथा सरकार को खूब आड़े हाथों लिया है। हरेक के दिल में मेरी बातें चुभ रही हैं। कोई दोस्त आशना, अथवा मददगार नहीं, जिसका सहारा हो। एक परम पिता परमात्मा की याद है। गीता पाठ करते हुए सन्तोष है कि -
जो कुछ किया सो तैं किया, मैं कुछ कीन्हा नाहिं
जहां कहीं कुछ मैं किया, तुम ही थे मुझ मांहिं।
ब्रह्मण्याधाय कर्माणि संगं त्यक्त्वा करोति यः
लिप्यते न स पापेभ्योः पद्मपत्रमिवाम्भसः ।
'जो फल की इच्छा को त्याग करके कर्मों को ब्रह्म में अर्पण करके कर्म करता है, वह पाप में लिप्तं नहीं होता। जिस प्रकार जल में रहकर भी कमल-पत्र जल में नहीं होता।' जीवनपर्यन्त जो कुछ किया, स्वदेश की भलाई समझकर किया। यदि शरीर की पालना की तो इसी विचार से की कि सुदृढ़ शरीर से भले प्रकार स्वदेशी सेवा हो सके। बड़े प्रयत्नोंे से यह शुभ दिन प्राप्ता हुआ। संयुक्तद प्रान्त में इस तुच्छ शरीर का ही सौभाग्य होगा जो सन् 1857 ई० के गदर की घटनाओं के पश्चाहत् क्रान्तिकारी आन्दोलन के सम्बंध में इस प्रान्त के निवासी का पहला बलिदान मातृवेदी पर होगा।
सरकार की इच्छा है कि मुझे घोटकर मारे। इसी कारण इस गरमी की ऋतु में साढ़े तीन महीने बाद अपील की तारीख नियत की गई। साढ़े तीन महीने तक फांसी की कोठरी में भूंजा गया। यह कोठरी पक्षी के पिंजरे से भी खराब है। गोरखपुर जेल की फांसी की कोठरी मैदान में बनी है। किसी प्रकार की छाया निकट नहीं।
प्रातःकाल आठ बजे से रात्रि के आठ बजे तक सूर्य देवता की कृपा से तथा चारों ओर रेतीली जमीन होने से अग्नि वर्षण होता रहता है। नौ फीट लम्बी तथा नौ फीट चौड़ी कोठड़ी में केवल छः फीट लम्बा और दो फीट चौड़ा द्वार है। पीछे की ओर जमीन के आठ या नौ फीट की ऊंचाई पर एक दो फीट लम्बी तथा एक फुट चौड़ी खिड़की है। इसी कोठरी में भोजन, स्नान, मल-मूत्र त्याग तथा शयनादि होता है।
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