ई-पुस्तकें >> रामप्रसाद बिस्मिल की आत्मकथा रामप्रसाद बिस्मिल की आत्मकथारामप्रसाद बिस्मिल
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प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी बिस्मिल जी की आत्मकथा
जेल
जेल में पहुंचते ही खुफिया पुलिस वालों ने यह प्रबन्ध कराया कि हम सब एक दूसरे से अलग रखे जाएं, किन्तु फिर भी एक दूसरे से बातचीत हो जाती थी। यदि साधारण कैदियों के साथ रखते तब तो बातचीत का पूर्ण प्रबन्ध हो जाता, इस कारण से सबको अलग अलग तनहाई की कोठड़ियों में बन्द किया गया। यही प्रबन्ध दूसरे जिले की जेलों में भी, जहां जहां भी इस सम्बन्ध में गिरफ्तारियां हुई थी, किया गया था। अलग-अलग रखने से पुलिस को यह सुविधा होती है कि प्रत्येक से पृथक-पृथक मिलकर बातचीत करते हैं। कुछ भय दिखाते हैं, कुछ इधर-उधर की बातें करके भेद जानने का प्रयत्न करते हैं। अनुभवी लोग तो पुलिस वालों से मिलने से इन्कार ही कर देते हैं। क्योंकि उनसे मिलकर हानि के अतिरिक्ते लाभ कुछ भी नहीं होता। कुछ व्यक्तिर ऐसे होते हैं जो समाचर जानने के लिए कुछ बातचीत करते हैं। पुलिस वालों से मिलना ही क्या है। वे तो चालबाजी से बात निकालने की ही रोटी खाते हैं। उनका जीवन इसी प्रकार की बातों में व्यतीत होता है। नवयुवक दुनियादारी क्या जानें? न वे इस प्रकार की बातें ही बना सकते हैं।
जब किसी तरह कुछ समाचार ही न मिलते तब तो जी बहुत घबड़ाता। यही पता नहीं चलता कि पुलिस क्या कर रही है, भाग्य का क्या निर्णय होगा? जितना समय व्यतीत होता जाता था उतनी ही चिन्ता बढ़ती जाती थी। जेल-अधिकारियों से मिलकर पुलिस यह भी प्रबन्ध करा देती है कि मुलाकात करने वालों से घर के सम्बन्ध में बातचीत करें, मुकदमे के सम्बन्ध में कोई बातचीत न करे। सुविधा के लिए सबसे प्रथम यह परमावश्यक है कि एक विश्वा।स-पात्र वकील किया जाए जो यथासमय आकर बातचीत कर सके। वकील के लिये किसी प्रकार की रुकावट नहीं हो सकती। वकील के साथ अभियुक्त की जो बातें होती हैं, उनको कोई दूसरा सुन नहीं सकता। क्योंकि इस प्रकार का कानून है, यह अनुभव बाद में हुआ। गिरफ्तारी के बाद शाहजहांपुर के वकीलों से मिलना भी चाहा, किन्तु शाहजहांपुर में ऐसे दब्बू वकील रहते हैं जो सरकार के विरुद्ध मुकदमें में सहायता देने में हिचकते हैं।
मुझ से खुफिया पुलिस के कप्तासन साहब मिले। थोड़ी सी बातें करके अपनी इच्छा प्रकट की कि मुझे सरकारी गवाह बनाना चाहते हैं। थोड़े दिनों में एक मित्र ने भयभीत होकर कि कहीं वह भी न पकड़ा जाए, बनारसीलाल से भेंट की और समझा बुझा कर उसे सरकारी गवाह बना दिया। बनारसीलाल बहुत घबराता था कि कौन सहायता देगा, सजा जरूर हो जायेगी। यदि किसी वकील से मिल लिया होता तो उसका धैर्य न टूटता। पं० हरकरननाथ शाहजहांपुर आए, जिस समय वह अभियुक्त श्रीयुत प्रेमकृष्ण खन्ना से मिले, उस समय अभियुक्तर ने पं० हरकरननाथ से बहुत कुछ कहा कि मुझ से तथा दूसरे अभियुक्तोंं से मिल लें। यदि वह कहा मान जाते और मिल लेते तो बनारसीदास को साहस हो जाता और वह डटा रहता।
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