ई-पुस्तकें >> प्रेरक कहानियाँ प्रेरक कहानियाँकन्हैयालाल
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मनोरंजक और प्रेरणाप्रद बोध कथाएँ
5. आवेश के क्षण
एक प्रसिद्ध व्यापारी के विषय में किसी समाचार-पत्र में कटु आलोचना और निन्दाजनक बातें प्रकाशित हो गयीं। उस व्यापारी ने उन बातों को पढ़ा तो क्रोध से तमतमा कर, हाथ में समाचार-पत्र की प्रति लिये, अपने एक मित्र (मन्त्री) के बँगले पर जा धमका ! उससे बोला - 'लानत है तुम पर! यार, तुम्हारा मित्र होते हुए भी अखबार वाले मेरे विषय में क्या अण्ट-सण्ट लिख रहे हैं, लो, स्वयं पढ़ लो और अभी तुरन्त मेरे साथ न्यायालय चलो।'
'न्यायालय चलकर क्या करोगे?' मन्त्रीजी ने मुस्करा कर पूछा।
'इस अखबार के मूर्ख सम्पादक को मजा चखाने के लिए, उसके विरुद्ध मानहानि का दावा दायर करना पड़ेगा।' अखबार में छपा समाचार पढ़ने के बाद उस व्यापारी के मित्र मन्त्री ने पूर्ववत् मुस्कराते हुए कहा - 'यों तुम्हारे लिए अदालत तो क्या, मैं नर्क में भी चलने को तैयार हूँ। मगर शान्तचित्त होकर पहले मेरे एक प्रश्न का उत्तर दे दो!'
'बोलो, क्या पूछना चाहते हो?'
'इस समाचार पर तुम्हारी स्वयं की नजर गई थी या किसी अन्य सज्जन ने इसकी सूचना दी थी?'
'मेरे पास भला अखबार को आद्योपान्त पढ़ने का फालतू समय कहाँ है, मुझे तो किसी दूसरे आदमी ने ही इस समाचार को दिखाया है।'
'हुँ...विश्वास करो! सुबह यह अखबार मैंने भी पढ़ा था, पर मेरी नजर भी इस समाचार पर नहीं गई थी। इसलिए हमें सम्पादक के खिलाफ मानहानि तो दूर, इस समाचार की चर्चा भी किसी से नहीं करनी है।
क्योंकि हमारी-तुम्हारी तरह ही इस अखबार में आधे से अधिक पाठकों ने तो यह समाचार देखा ही न होगा। जिन्होंने देखा भी होगा, उनमें से आधे लोगों ने पढ़ा न होगा। जिन्होंने पढ़ा भी होगा, उनमें से बहुतेरों ने इसे समझा न होगा और जिन्होंने समझ भी लिया होगा, उन्होंने इस समाचार को सत्य नहीं माना होगा।'
व्यापारी ने भी लड़ने की कसम नहीं खा रही थी, अपने मित्र की बात उसकी समझ में आ गई और उसकी बदले की भावना तिरोहित हो गई।
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