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पथ के दावेदार

शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :537
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9710
आईएसबीएन :9781613014288

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हम सब राही हैं। मनुष्यत्व के मार्ग से मनुष्य के चलने के सभी प्रकार के दावे स्वीकार करके, हम सभी बाधाओं को ठेलकर चलेंगे। हमारे बाद जो लोग आएंगे, वह बाधाओं से बचकर चल सकें, यही हमारी प्रतिज्ञा है।


रामदास बोला, “अंग्रेजी में तो हम लोग और अधिक गलतियां करते हैं। आप अंग्रेजी में बोला करें। लेकिन अगर मैं हिंदी में उत्तर दूंगा, क्षमा कर दीजिएगा।”

अपूर्व बोला, “मैं भी हिंदी में ही बोलने की चेष्टा करूंगा। लेकिन गलती होने पर आप भी मुझे क्षमा करोगे।”

इस बातचीत के बीच रोजेन साहब स्वयं मैनेजर के कमरे में आ गए। उम्र पचास के लगभग होगी। हालैंड के निवासी हैं। साधारण ढंग के कपडे। चेहरे पर घनी दाढ़ी-मूंछें। टूटी-फूटी अंग्रेजी बोलते हैं। पक्के व्यवसायी हैं। अब तक बर्मा के अनेक स्थानों में घूमकर तरह-तरह के लोगों से मिलकर, तथ्य संग्रह करके, काम काज के कार्यक्रम का उन्होंने खाका तैयार कर लिया है। उस कार्यक्रम के कागज अपूर्व की टेबल पर रखते हुए बोले, “इसके विषय में आपकी क्या राय है?” फिर तलवलकर से बोले, “इसकी एक प्रति आपके कमरे में भी भेज दी है। लेकिन इसे अभी रहने दिया जाए। क्योंकि आज नए मैनेजर के सम्मान में ऑफिस बंद हो जाएगा। मैं जल्दी ही चला जाऊंगा। तब आप दोनों पर ही सारा कार्यक्रम रहेगा। मैं अंग्रेज नहीं हूं। यद्यपि यह राज्य हम लोगों का हो सकता था। फिर भी उन लोगों की तरह हम भारतीयों को नीच नहीं समझते। अपने समान ही समझते हैं। केवल फर्म की ही नहीं, आप लोगों की उन्नति भी आप लोगों के कर्त्तव्य-ज्ञान पर निर्भर है। अच्छा गुड्डबाइ। ऑफिस दो बजे के बाद बंद जो जाना चाहिए। कहते हुए जिस तरह आए थे उसी तरह चले गए।

ठीक दो बजे दोनों साथ-साथ ऑफिस से निकले। तलवलकर शहर में नहीं रहता। लगभग दस मील पश्चिम में इनसिन नामक स्थान में डेरा है। डेरे में उसकी पत्नी तथा एक छोटी-सी बेटी रहती है वहां शहर का हो-हल्ला नहीं है। ट्रेनों में आने-जाने से कोई असुविधा नहीं होती।

“हाल्दर बाबू, कल ऑफिस के बाद मेरे यहां चाय का निमंत्रण रहा,” तलवलकर ने कहा।

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