ई-पुस्तकें >> परसाई के राजनीतिक व्यंग्य परसाई के राजनीतिक व्यंग्यहरिशंकर परसाई
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राजनीतिक विषयों पर केंद्रित निबंध कभी-कभी तत्कालीन घटनाक्रम को ध्यान में रखते हुए अपने पाठ की माँग करते हैं लेकिन यदि ऐसा कर पाना संभव न हो तो भी परसाई की मर्मभेदी दृष्टि उनका वॉल्तेयरीय चुटीलापन इन्हें पढ़ा ले जाने का खुद में ही पर्याप्त कारण है।
प्रवचन और कथा
पिछले तीन-चार सालों से प्रवचनों और उपदेशों की लड़ी लगी है। प्रवचन पहिले भी होते थे। कुछ की जीविका प्रवचन करना था। कुछ संन्यासी वेश में होते थे और जिनका उद्देश्य पंथप्रचार के साथ जीविकोपार्जन भी होता था। जो प्रवचन कराते वे भेंट भी देते थे। कुछ कथा कहते थे बड़े मोहक करते थे। किसी को बुरा नहीं कहते थे। ललित कथा कहते थे। ये ईश्वर प्राप्ति का मार्ग बताते थे जो वे खुद नहीं जानते थे। जानते होते तो उस मार्ग से ईश्वर के पास पहुँच जाते और प्रभु दरबार में रत होते। ये इस विश्वास को प्रचारित करते थे कि जगत मिथ्या है। माया है। मूर्खों क्यों माया में लिपटे हो। यह देह पाप की खान है। देह धारण करना पाप है। मैं सोचता-तुलसीदास क्या मूर्ख थे जो कहा है- ''बड़े भाग मानुष तनु पाया''। अधिकांश मायावादियों ने संसार को दुख-सागर कहा है, लेकिन नाथपंथी कहते हैं-
'सुख सागर में आयकै हता मत पियासा जाय रे।
ये माया विरोधी कहते- मूर्खों, इस नाशवान देह की सेवा करते हो। स्वादिष्ट भोजन कराते हो। अरे एक दिन यह नष्ट हो जाएगी। इसे कीड़े-मकौड़े खाएँगे। मैंने देखा स्वामीजी रबड़ी का गिलास गटक गए। इसलिए कि कीड़े-मकौड़ों को आगे उनकी देह खाने में मजा आएगा। असल में शंकर के मायावाद के प्रचार से जीवन के प्रति नकारात्मक दृष्टि आई। भौतिक उन्नति की तरफ कोई ध्यान नहीं दिया गया। कोई नई खोजें नहीं हुईं। औषधि विज्ञान में कोई काम नहीं हुआ। जीवन ही मिथ्या है तो इसके लिए क्यों कुछ करना। बुद्ध के प्रभाव से भौतिक और रसायन शास्त्र में, चिकित्सा विज्ञान में बहुत काम हुआ। मध्यम मार्ग था। बौद्ध विचार में वैचारिक दृष्टि है, तर्क है। सकारात्मक दृष्टि है। बुद्ध की कल्पना की नगरी संपन्न है, सुखी है।
ये जो मायावादी प्रवचनकर्ता होते थे, इनके उपदेश के बाद लोग हर घर जाकर डटकर भोजन करते थे। कीड़ों-मकौड़ों के लिए। सामान्य जन वैसा ही चला आया है, दार्शनिक विवाद चाहे जो हों। भदंत आनंद कौसल्यायन ने लिखा है - हमारे नगर आर्य समाज के प्रचारक आए। ये प्रचारक अब नहीं आते। मैंने किशोरावस्था में इन्हें सुना है। ये हारमोनियम भी साथ रखते थे। बीच-बीच में कोई पद गाते थे। अकसर पंजाब के होते थे। उर्दू शायरी गाते थे। भदंत ने लिखा है- उनके तीन भाषण हो गए तब मैं उनके पास गया। पूछा- स्वामीजी, और कितने दिन रहेंगे।
स्वामीजी ने कहा - हम चार भाषणवाले हैं। तीन हो गए। एक भाषण कल देकर चले जाएँगे।
इन प्रचारकों में कोई दो भाषण रटे होता, कोई चार कोई पाँच। वे उतने ही बोलते थे। चार भाषणों का तत्त्व लेकर पाँचवां भाषण नहीं देते थे।
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