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परसाई के राजनीतिक व्यंग्य

हरिशंकर परसाई

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :296
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9709
आईएसबीएन :9781613014189

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राजनीतिक विषयों पर केंद्रित निबंध कभी-कभी तत्कालीन घटनाक्रम को ध्यान में रखते हुए अपने पाठ की माँग करते हैं लेकिन यदि ऐसा कर पाना संभव न हो तो भी परसाई की मर्मभेदी दृष्टि उनका वॉल्तेयरीय चुटीलापन इन्हें पढ़ा ले जाने का खुद में ही पर्याप्त कारण है।

जवाहरलाल नेहरू ने लिखा है - धर्म का जन्म डर और अज्ञान से हुआ। अज्ञान तो था ही। एकाएक मनुष्य इस विराट ब्रह्मांड में आ गया, जिसके बारे में कुछ नहीं जानता था। मैं हूँ कौन, किसने बनाया मुझे? और इस सिंह को। यह प्रकृति, ये नक्षत्र, पहाड़, नदी, सागर ये सब क्या हैं? कैसे बने? मैं तो इन्हें नहीं बना सकता। मनुष्य ने नहीं बनाए। फिर? मनुष्येतर कोई परम शक्ति है, जिसने यह रचना की और जिसे चलाता जाता है और नाश करता जाता है। हम नहीं जानते। वेद में कहा गया - वह है या नहीं। वह है या नहीं के बीच में है। हम नहीं जानते। वही जानता है। संभवत: वह भी नहीं जानता।

फिर ये बादल, गर्जन, तर्जन, वर्षा बिजली। यह सुंदर है, आह्लाद- कारी है। पर यह भयावह और विनाशकारी है। यह देवता है। यह इंद्र है। इसकी पूजा करो। यह हमारा मंगल करे, अमंगल न करे। देवता पैदा हो गए।

विज्ञान कहता है - जल से सूर्य के ताप के कारण भाप बनती है। भाप इकट्ठी होती है, तो बादल बनता है। ये बादल मँडराते हैं। इन्हें ठंड मिलने पर भाप फिर पानी में बदल जाती है और पृथ्वी पर पानी गिरता है। और यह जो बिजली है, बादलों में ऋण और धन विद्युत होती है। जब ये बादल पास आते हैं तब विस्फोट के साथ बिजली पैदा होती है, अनंत प्रकाशवान और विनाशकारी। अधिकतर बिजली आकाश में ही बुझ जाती है। पृथ्वी पर गिरती है तो सबसे ऊँचे पाइंट पर, पेड़ पर इसलिए ज्यादा गिरती है कि वह ऊँचा होता है और पत्तों में लौह होता है। धातु बिजली को खींचती है। मंदिर पर बिजली इसलिए गिरती है कि उसके शिखर पर धातु का कलश होता है। गाँव का मंदिर बिजली से पूरे गाँव को बचा लेता है। बिजली को धातु के 'लाइटनिंग कंडक्टर' से पृथ्वी में भेजा जा सकता है।

विज्ञान ने यह सब बता दिया। कोई देवता यह सब नहीं करता। मगर धर्म क्या इंद्र को नकार देगा। कतई नहीं। कुछ साल पहले कर्नाटक सरकार के जल-विभाग ने सरकारी खर्च से पंडितों से 'पर्जन्य यज्ञ' कराया था, बंगलौर पर वर्षा के लिए, जिससे जलाशय भर जाय। उसी दिन मौसम विज्ञान की भविष्यवाणी थी कि बंगलौर और उसके आसपास वर्षा होगी। शाम को वर्षा हुई, पर बंगलौर शहर में नहीं, आसपास। बंगलौर में छींटे ही पड़े।

विज्ञान ने बहुत सा अज्ञान नष्ट कर दिया है। अंधविश्वास के लिए मनुष्य बाध्य नहीं है। आस्था की जगह उसे तर्क मिल गए हैं। विज्ञान ने बहुत से भय भी दूर कर दिए हैं, हालाँकि नए भय भी पैदा कर दिए हैं। विज्ञान तटस्थ (न्यूट्रल) होता है। उसके सवालों का, चुनौतियों का जवाब देना होगा। मगर विज्ञान का उपयोग जो करते हैं, उनमें वह गुण होना चाहिए, जिसे धर्म देता है। वह गुण है 'अध्यात्म' (स्पिरिचुएलिज्म)- अंतत: मानवतावाद। वरना विज्ञान विनाशकारी भी हो जाता है।


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