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परिणीता

शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :148
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9708
आईएसबीएन :9781613014653

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‘परिणीता’ एक अनूठी प्रणय कहानी है, जिसमें दहेज प्रथा की भयावहता का चित्रण किया गया है।


मनोरमा तब सारा किस्सा कह चली। किस तरह गत वर्ष रुपयों की तंगी के मारे गुरुचरण बाबू की मँझली लड़की का ब्याह रुका हुआ था, उस अवसर पर बेहद सूद पर बूढ़े नवीन राय ने रुपये उधार देकर घर रेहन रख लिया, सब कह सुनाया। यह भी कहना नहीं भूली कि कर्ज की रकम कमी अदा नहीं होने की, और अन्त को यह घर नवीन राय ही हथिया लेंगे।

सारी कहानी कहकर अन्त को मनोरमा ने अपनी यह टिप्पणी जड़ी कि बूढ़े की दिली मंशा यह है कि गरीब गुरुचरण का घर गिरवाकर उसी जगह छोटे लड़के शेखर के लिए एक बड़ा-सा महल बनवा दें। अन्य दो लड़कों के लिए दो अलग-अलग घर मौजूद हैं, तीसरे ही के लिए नहीं है। बूढ़े का मतलब बुरा नहीं है।

सम्पूर्ण इतिहास सुनकर गिरीन्द्र को खेद हुआ। उसने पूछा- अच्छा दीदी, गुरुचरण बाबू के तो और भी लड़कियाँ अभी ब्याहने को हैं- उनका ब्याह वे किस तरह करेंगे?

मनोरमा ने कहा-- अपनी लड़कियाँ तो हैं ही, उनके अलावा यह भानजी ललिता भी है। बे मां-बाप की अनाथ, असहाय होने के कारण उसका भी बोझ इसी गरीब मामा के सिर पर है। सयानी हो चली है। इसी साल ब्याह हो जाना चाहिए, चाहे जिस तरह हो। इस पुरानी परिपाटी वाले समाज में-गुरुचरण बाबू की जाति-बिरादरी में - सहायता करने को कोई नहीं है, और बिरादरी से अलग करने. वाले, जरा सा भी पुरानी रीति-नीति का पालन न कर पाने पर आहार-व्यवहार बन्द करने वाले सभी हैं। हम ब्रह्मसमाजी लोग बडे़ मजे में हैं गिरीन।

गिरीन्द्र चुप रहा। मनोरमा कहने लगी- उस दिन ललिता के ही बारे में बातें करते-करते उसकी मामी मेरे आगे रोने लगी थी। किस तरह कहां से क्या होगा, कुछ ठिकाना नहीं। इस भानजी के ब्याह की चिन्ता के मारे गुरुचरण बाबू का खाना-पीना छूटा हुआ है। हाँ रे गिरीन, मुँगेर में तेरे बहुत यार-दोस्त और जान-पहचान के लड़के होंगे। क्या कोई ऐसा तेरा इष्ट-मित्र नहीं जो खाली लड़की का रूप-गुण देखकर ब्याह करने के लिए तैयार हो? सचमुच ऐसी सुशील, सुघर और सुन्दर लड़की मिलना मुश्किल है। लाखों में एक है।

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