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परिणीता

शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :148
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9708
आईएसबीएन :9781613014653

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‘परिणीता’ एक अनूठी प्रणय कहानी है, जिसमें दहेज प्रथा की भयावहता का चित्रण किया गया है।

4

इस महल्ले में एक बहुत बूढा फकीर जब-तब भीख माँगने आया करता था। उस पर ललिता की बड़ी दया थी। वह जब आता, तभी उसे ललिता एक रुपया हर बार दिया करती थी। रुपया पाकर वह भिक्षुक जो सम्भव और असम्भव आशीर्वाद देता था, उनको ललिता बड़ी रुचि से सुना करती थी। फकीर कहता था, ललिता पूर्वजन्म में जरूर उसकी सगी मां थी और इस जन्म में ललिता को पहली बार देखते ही उस फकीर ने इस सत्य को न जाने किस तरह जान लिया- देखते ही उसे निश्चय हो गया कि यह दयामयी बालिका ही उस जन्म की उसकी माता है। ललिता के इस बूढ़े लड़के ने आज सबेरे ही आकर दरवाजे पर ऊँचे स्वर से आवाज दी- मेरी माई, मेरी मैया, कहाँ हैं जी?

सन्तान की पुकार सुनकर आज ललिता मुश्किल में पड़ गई। वह सोचने लगी- इस वक्त तो शेखर अपने कमरे मेँ मौजूद होंगे, रुपया लाने जाऊँ तो किस तरह जाऊँ? इधर-उधर ताककर ललिता अपनी मामी के पास पहुँची। मामी अभी-अभी महरी के साथ बकबक-झकझक करके तीन कोने का मुँह बनाये प्रचण्ड रूखे रुख से रसोई की तैयारी कर रही थी। उनसे भी कुछ कहने की हिम्मत ललिता को न हुई। लौट आकर बाहर झाँकी तो देख पड़ा कि भिक्षुक भैया किवाड़ के सहारे लाठी खड़ी करके मजे से आसन जमाकर बैठे हुए हैं। आज तक किसी दफे फकीर खाली नहीं लौटा। ललिता का मन आज भी इसीलिए फकीर को निराश करने के लिए राजी नहीं होता था।

भिक्षुक ने फिर आवाज लगाई।

अन्नाकाली ने दौड़ते हुए आकर खबर दी- दिदिया, तुम्हारा वही बेटा आया है।

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