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नीलकण्ठ

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :431
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9707
आईएसबीएन :9781613013441

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गुलशन नन्दा का एक और रोमांटिक उपन्यास

एक घंटे में गोल कमरा अतिथियों से भर गया। दो-दो, चार-चार व्यक्ति अपना-अपना झुंड बनाकर आपस में बातों में संलग्न थे। संध्या संकोच से आनंद के अधिक निकट न बैठ सकी और निशा व दूसरी सहेलियों के साथ बातें करने लगी। उसकी इस अनुपस्थिति और संकोच का लाभ उठाते हुए बेला आनंद के निकट आ बैठी और बातें करने लगी। आनंद उसकी इस निकटता से डर रहा था। अपने ही ध्यान में वह उसकी बातों का उत्तर दिए जाता और चोर दृष्टि से हर थोड़े समय पश्चात् संध्या को देख लेता जो स्वयं कनखियों से उसे देखे जा रही थी। बेला का यों खुलकर उससे हंस-हंसकर बातें करना संध्या को अच्छा न लग रहा था।

वह कई दिनों से बेला की हरकतों को ध्यानपूर्वक देख रही थी। उसके हर हाव-भाव में यौवन की उमंग थी। आधुनिक ढंग की तितली कहीं अपने सौंदर्य की किसी अदा से उसके दो-चार तिनकों पर बिजली गिराकर राख न कर दे। इसका ध्यान आते ही वह कांप सी जाती और फिर अपने विचार पर स्वयं से ही कहने लगती, 'कितनी पागल हूँ मैं तो-मेरा आनंद कभी ऐसा नहीं हो सकता।'

रायसाहब ने केक काटने के लिए संध्या को बड़ी मेज के पास बुलाया और सब लोग उस मेज के इर्द-गिर्द खड़े हो गए। ज्योंही संध्या ने केक पर सजी मोमबत्तियों को फूंक मारकर बुझाया, सारा कमरा तालियों से गूंज उठा। केक का पहला टुकड़ा उसने पापा को, दूसरा मम्मी को दिया। बारी-बारी सबने अपनी प्लेटें उठाईं और एक-एक टुकड़ा लेकर खाने लगे। आनंद ने भी बधाई देते हुए अपना भाग संध्या से ले लिया।

बेला ने बढ़कर छुरी संध्या के हाथ से ली और बोली-

'लाओ दीदी मैं बाँट दूँ, तुम थक जाओगी।' यह कहते हुए उसने एक टुकड़ा संध्या को दिया और एक टुकड़ा अपनी प्लेट में रख लिया। एक और टुकड़ा काटते हुए वह आनंद को संबोधित करती हुई बोली-

'अगर कहें तो एक आपकी प्लेट में भी रख दूँ।'

'ओह!' वह चौंकते हुए बोला-'परंतु मैं तो अपना भाग ले चुका हूँ।' 'नहीं, दीदी का मन बहुत छोटा है - उसने आपको छोटा टुकड़ा दिया है - यह अन्याय मुझसे देखा नहीं जाता।'

'तो न्याय कीजिए - लाइए' आनंद ने प्लेट बढ़ाते हुए कहा।

बेला ने मुस्कराकर संध्या की ओर देखा जो क्रोध में भरी उसकी हर क्रिया को देख रही थी और केक का एक टुकड़ा काटकर उसकी प्लेट में रख दिया। आनंद उसे लेते हुए बोला-

'बेला! संध्या ने सच मुझसे बड़ा अन्याय किया था, परंतु इतना बड़ा टुकड़ा देकर तो तुमने सब अतिथियों से अन्याय किया है। मेरे विचार में संध्या का न्याय तुमसे ठीक था। उसने सबसे एक समान बर्ताव किया था।'

आनंद की यह बात सुन संध्या की सब सहेलियाँ खिलखिलाकर हंसने लगीं और संध्या के गंभीर मुख पर मुस्कान की एक रेखा दौड़ गई। बेला सबको यों अपने पर हंसता देख जल-भुन सी गई और अपनी प्लेट उठा बाहर वाली खिड़की के पास जा खड़ी हुई।

खाने-पीने के पश्चात्, गाने-बजाने का प्रोग्राम आरंभ हुआ। रेनु ने नाच दिखाया, निशा ने एक गीत सुनाया और जब बेला को सब खींचकर सभा में लाए तो वह चिहुंक उठी। उसका स्वर सबसे निराला था।

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