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नीलकण्ठ

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :431
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9707
आईएसबीएन :9781613013441

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गुलशन नन्दा का एक और रोमांटिक उपन्यास

'दीनू लाओ. यह बरसाती मुझे उतार दो।'

'आपको? किसलिए?'

'खाना लेकर मैं स्वयं जाऊँगा। बाबा इस बरसाती में तो दूर से मुझे चौकीदार ही समझेंगे।'

'जी, कहीं बाबूजी ने दीनू समझकर पुकार लिया तो।'

'तो - क्या, मुझे तो बाहर ही से जाना है। तुम चिंता न करो।'

दीनू ने झट से अपना बरसाती कोट उतार आनंद को दे दिया। आनंद ने बरसाती को इस ढंग से ओढ़ लिया कि कोई शंका न करे और बाहर से घूमकर प्लेटफॉर्म पर आया। काली घटाएँ स्टेशन पर एक धुंध का पर्दा लिए हुए थीं जिसकी ओट लिए अपने आपको छिपाए आनंद डिब्बे की ओर बढ़ता जा रहा था। बेला मार्ग पर दृष्टि बिछाए, पहले से ही द्वार में लगी प्रतीक्षा में खड़ी थी। आनंद ने मन-ही-मन उसे बनाने की सोची। उसने भी तो गाड़ी में उसे बनाया था। आनंद ने अपने मुँह को गर्म मफलर से ढंक लिया जिससे आँखों के अतिरिक्त सब कुछ छिप गया।

उसके डिब्बे के निकट पहुँचने पर बेला नीचे उतरी और उसके हाथों से खाना लेकर ऊपर चढ़ गई। आनंद भी उसके पीछे-पीछे ऊपर आ गया। बेला ने टिफिन खोल खाना सीट पर लगा लिया और उसकी ओर असावधानी से देखते हुए बोली-'अब तुम जाओ, मैं खा लूँगी।'

'माँ जी ने कहा है बर्तन साथ वापस लाना।' आनंद ने भारी स्वर में उत्तर दिया।

'अच्छा, लो यह गिलास-नल से पानी ले आओ।

आनंद आज्ञा पालन के लिए उठा और गिलास लेकर नीचे उतर गया। बेला उसे नीचे जाते देख एकाएक कांप सी गई और फिर ध्यानपूर्वक देख मुस्करा पड़ी। जो रहस्य आनंद उससे छिपाना चाहता था वह उसके नये सफेद जूते और रेशमी जुराबें न छुपा सकीं।

आनंद जब पानी लेकर लौटा तो बेला फिर गंभीर हो गई जैसे वह अभी तक उसे चौकीदार ही समझ रही हो। खाना खाते वह कई बार कनखियों से झांककर आनंद को देख लेती जो मफलर में से टकटकी लगाए उसे देखे जा रहा था। बीच में बेला ने उसे संबोधित करते पूछा-'क्या भूख लगी है?' 'नहीं तो!' वह कांप सा गया।

'तो फिर मुझे यूं क्यों देखे जा रहे हो?'

आनंद निरुत्तर हो गया और अपनी घबराहट छिपाने के लिए खिड़की के शीशे खोलने लगा। बेला ग्रास को मुँह में रखती हुई बोली-

'मफलर से ढंका सिर और मुँह, उसमें दो मोटी-मोटी आँखें जानते हो कैसे लग रहे हो?'

'कैसा?' आनंद की मौन और विस्मय दृष्टि ने पूछा।

'जैसे उल्लू!' बेला मुस्कराते हुए आनंद से बोली जो यह शब्द सुनते ही तड़पकर रह गया पर किसी कारण से चुप रहने पर विवश था। अभी तक वह छिपी दृष्टि से बेला को देखे जा रहा था।

खाना खाने के पश्चात् बेला ने टिफिन बंद किया और सामने की सीट पर आ बैठी। आनंद ने टिफिन उठा लिया। वह उलझन में था कि कैसे बेला को चक्कर में लाते-लाते वह उसमें स्वयं फंस गया।

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