ई-पुस्तकें >> नीलकण्ठ नीलकण्ठगुलशन नन्दा
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गुलशन नन्दा का एक और रोमांटिक उपन्यास
'और आप?'
'मैं पिताजी के जाते ही तुम्हारे पास आ जाऊँगा और चौकीदार से वेटिंग-रूम खुलवाकर तुम्हारे आराम का पूरा प्रबंध करवा दूँगा। अच्छा, डरने की कोई बात नहीं। चौकीदार तुम्हारा ध्यान रखेगा।'
इस तरह आनंद ने बेला को टालने पर सहमत कर लिया। वह भी प्रसन्न थी कि इतनी रात गए एक अनजाने घर में व्यर्थ प्रश्नों की बौछार से बच गई और फिर एकांत में आनंद भी तो उससे मिलने आएगा। यह सोच उसके मन में गुदगुदी होने लगी।
बेला का सामान दीनू ने डिब्बे में लगा दिया। आनंद के संकेत पर वह डिब्बे की ओर बढ़ी और चौकीदार के हाथ का सहारा लेकर ऊपर चढ़ गई। ज्यों ही आनंद अपना सूटकेस उठा प्लेटफॉर्म की ओर मुड़ा बेला ने बड़ी सकुमारता से कहा-'मुझे भूख लगी है।'
'अभी प्रबंध किए देता हूँ। दीनू तुम मेरे साथ आओ।' यह कहकर आनंद आगे चला गया। थोड़ी दूर जाकर उसने घूमकर देखा। बेला डिब्बे के द्वार से लगी उसे देखे जा रही थी। कदाचित् उसकी दृष्टि उस मार्ग की जांच कर रही थी जिस पर आनंद जा रहा था।
आनंद को अचानक देख उसके पिताजी अतिप्रसन्न हुए और उसे गले से लगा लिया। उनकी ड्यूटी लगभग एक घंटे में समाप्त होने वाली थी और उन्होंने आनंद को अपने साथ ही रुकने को कहा। किंतु उसके मुख पर व्याकुलता के चिह्न देख वह समझे कि माँ से मिलने के लिए बेचैन होगा। दो क्षण चुप रहने के पश्चात् बोले-'अच्छा, चलो मैं आ जाऊँगा।' डूबते को जैसे आशा की किरण मिल गई। वह तेजी से दीनू के संग हो लिया।
घर निकट ही था। ऊपर वाले कमरे की खिड़की से छन-छन कर आता उजाला यह बता रहा था कि माँ अभी सोई नहीं। वह लपककर भीतर आया और चुपके से माँ की आँखें अपनी हथेलियों से बंद कर दीं। माँ बोली-'कौन? मेरा लाल! मैं तुम्हारी ही प्रतीक्षा कर रही थी।'
'तुम्हें कैसे ज्ञात हुआ कि मैं आ रहा हूँ।' दोनों हाथ माँ के कंधों पर रखते हुए बोला।
'मेरा मन मुझसे कह रहा था। विश्वास न हो तो देख लो तुम्हारे लिए खाना भी रखा है।'
'ओह खाना! हाँ माँ, मैं भूल ही गया था। शीघ्र ही किसी बरतन में खाना लगा दो। दीनू!' आनंद ने खिड़की में से झांककर नीचे खड़े दीनू को आवाज देते हुए कहा।
'परंतु किसके लिए? तुम्हारे बाबा तो खा गए।'
'उनके लिए नहीं, एक सहयोगी के लिए जो वेटिंग-रूम में है। मेरा एक मित्र है।'
'तो उसे घर तक ही ले आते।'
'बहुत कहा पर वह नहीं माना।'
बाहर बादल की गरजन फिर सुनाई दी और माँ रसोईघर की ओर भागी। कहीं बरखा फिर आरंभ न हो जाए और शीघ्रता से खाना परोसने लगी।
खाना लेकर आनंद नीचे दीनू के पास गया किंतु, उसके हाथों में वह खाना देते रुक गया और फिर कुछ सोचकर बोला-
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