ई-पुस्तकें >> नीलकण्ठ नीलकण्ठगुलशन नन्दा
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गुलशन नन्दा का एक और रोमांटिक उपन्यास
आनन्द ने अनुभव किया कि प्रेम की वास्तविक विजय यही है। उसमें भी आज वैसे ही बलिदान और साहस की भावनाएँ थीं जो उसने संध्या में देखी थीं। लोग सत्य ही कह रहे थे कि आज संध्या दीदी लौट आई थी।
आनन्द के लिए भी नया जीवन था। अंधेरे में मार्ग दिखाने वाली किरण - प्रसन्नता से उसकी आँखों से आँसू छलक पड़े और पास जाकर उसका हाथ स्नेह से अपने हाथों में ले लिया और धीरे से उसके कान में बोला-'यह क्या?'
'आप तो कहते थे कि आपको दीदी की आत्मा चाहिए।'
शोर बढ़ता गया। बस्ती का हर व्यक्ति भारी-भरकम मशीनों को हटाने में व्यस्त था। सब अपने भाग्य का नवनिर्माण करने में लगे थे। आनन्द, बेला, अपाहिज मामू और सुंदर सब मजदूरों के संग लगे उनका हाथ बंटा रहे थे। अब वे संध्या के लगे पौधे को पहले से कहीं ऊँचा और हरा-भरा देखना चाहते थे जिससे वह पुन: किसी तूफान की लपेट में न आ सके।
।। समाप्त ।।
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