ई-पुस्तकें >> नीलकण्ठ नीलकण्ठगुलशन नन्दा
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गुलशन नन्दा का एक और रोमांटिक उपन्यास
'बीनापुर', वह रुकते हुए बोला, 'कभी-कभी उनकी ओर से यहाँ आया करता था - पर अपने कारखाने की ओर से वहाँ जा रहा हूँ।'
हुमायूं एकाएक चुप हो गया और सोचने लगा। चंद क्षण सोचने के बाद बोला-'कितना अच्छा मौका है।'
'कौन-सा?' संध्या ने झट पूछा।
'आनन्द बीनापुर जा रहा है, कहो तो बेला को भी भिजवा दूँ।'
आनन्द हुमायूँ की बात सुनकर खिलखिलाकर हँस पड़ा और हुमायूं के पास आकर बोला-'वास्तव में कितना सुंदर विचार है, हुमायूं भाई - इस मानसिक उपज को फिल्म इंडस्ट्री के लिए रख छोड़ो - इन बेतुकी बातों को जोड़ते रहोगे. तो भूखे मरोगे।'
'आनन्द तुम तो हर बात मजाक मे टाल देते हो - आखिर वह तुम्हारी बीवी है, तुम दोनों की भलाई इसी में है कि नफरत का कांटा दिलों से हमेशा के लिए निकाल दो।'
'फिर क्या होगा?' आनन्द ने हँसते हुए पूछा।
'प्यार का चश्मा फूट पड़ेगा।'
'प्यार - हूँ - वहाँ घृणा और जहर के अतिरिक्त कुछ नहीं - साँप से अमृत की आशा रखना अपनी भूल है।'
'किंतु जहर देखते हुए उसका नाश न करना उससे भी बड़ी भूल है - आप भी तो अपने मन में बेला के लिए घृणा का जहर रखते हैं', संध्या बोली। 'हाँ रखता हूँ।'
'तो अवसर से लाभ उठाइए - विष को विष काटता है। इस विष को अमृत बनाइए और बेला को अपने संग ले जाइए - इस जगमगाती दुनिया से बहुत दूर बियावान पहाड़ियों की चोटियों पर - जहाँ से झरने फूटते हैं - झर-झर करता हुआ जल चट्टानों से खिलवाड़ करता है - घाटियाँ इसकी हँसी से गूँजती हैं - फिर-’ 'फिर' - आनन्द ने देखा कि संध्या के माथे पर पसीने के कण एकत्र हो गए हैं।
फिर एक दृढ़ पाँव जमाकर उसे खड्डे में धकेल दीजिए जहाँ वह सदा के लिए समा जाएं - और आपके जीवन के सब कांटे निकल जाएं - सब विष समाप्त हो जाए।'
'संध्या' - आनन्द चिल्लाया, 'आज तुम भी मेरी भावनाओं का उपहास कर रही हो - मुझे तुमसे यह आशा न थी।'
यह कहते हुए आनन्द कमरे से बाहर चला गया। हुमायूं ने बढ़कर उसे रोकना चाहा पर संध्या के संकेत पर वह चुप हो गया।
कुछ देर दोनों मौन एक-दूसरे को देखते रहे। फिर संध्या बोली-
'आपको बेला के पास जाना होगा।'
'तो क्या-’
'हाँ, उसे बीनापुर जाना ही चाहिए, हो सकता है जब दोनों इस बनावटी दुनिया से दूर अकेले में मिलें तो पिछली बातें भूलकर अपने को समझने का यत्न करें।'
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