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नीलकण्ठ

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :431
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9707
आईएसबीएन :9781613013441

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गुलशन नन्दा का एक और रोमांटिक उपन्यास


अठारह

आज सवेरे से ही बारिश का जोर था। वातावरण धुंध में लिपटा हुआ था। इसी कारण सपेरन की शूटिंग रोक दी गई थी।

स्टूडियो के दफ्तर में हुमायूं बैठा खिड़की के बाहर बरसात का दृश्य देख रहा था। चारों ओर जल-ही-जल था। कभी-कभी उसकी दृष्टि वहाँ से हटकर सामने सोफे पर बैठी बेला पर जा पड़ती जो किसी फिल्मी-पत्रिका को पढ़ रही थी। बेला कभी-कभी कनखियों से हुमायूं को देख लेती जो आज गंभीर बन बैठा था। हुमायूं मन-ही-मन बार-बार संध्या की बातों को दोहरा रहा था। उसे बेला के मन में आग लगानी थी - परंतु कैसे? उसने जीवन में कभी ऐसी बातें न की थीं इसलिए मस्तिष्क की उलझनों में पड़ा वह इसी सोच में था कि बात क्योंकर आरम्भ करे।

आखिर बेला मौन को तोड़ते हुए बोली-'आज वर्षा खूब जोरों पर है।' 'हाँ बेला, बहुत जोरों पर है', हुमायूं चौंकते हुए बोला।

'पर आप चुप क्यों हैं?'

'बरसात जो शोरगुल मचा रही है।'

'ओह - तो आप बरसात का शोरगुल सुन रहे हैं।'

'और क्या करें - काम से छुट्टी जो हुई - बचपन होता तो उछलते-कूदते, उधम मचाते - यों बैठे-बैठे कोफ्त तो न होती।'

'हम जो हैं आपका साथ देने को - कुछ अपनी सुनाइए - कुछ हमारी सुनिए - समय कट जाएगा।'

'हमारी क्या सुनोगी - दर्द और गम के रेलों के सिवा क्या रखा है अपनी दास्तां में-’

'और यहाँ कौन-सा ठहाकों का समुद्र रखा है- धुआं उठता भी है तो मुस्कराकर पी जाते हैं।'

'हाँ बेला, तुम ठीक कहती हो - रुपया, पैसा, शोहरत और यह आराम की जिन्दगी सब बेकार है दिल की दुनिया के सामने, और फिर आनन्द को जब से देखा है दिल पर चोट-सी लग गई है।'

आनन्द का नाम सुनते ही वह कांप उठी। हुमायूं ने देखा उसके मुख पर कालिमा-सी दौड़ गई। उसके सीने में छिपा तूफान फिर से मचलने लगा। हुमायूं फिर से कहने लगा -

'मेरी मानों तो आनन्द की लड़खड़ाती जिन्दगी को थाम लो।'

बेला के मन पर फिर चोट लगी। उसने एक बेबस पक्षी की भांति देखा और नम्रता से पूछने लगी-'क्या आपको मिले थे?'

'हूँ।'

'कहाँ?' बेचैनी को दबाते हुए उसने दोबारा पूछा।

'नीलकंठ की बस्ती में - तुम्हारी दीदी के यहाँ।'

संध्या का नाम सुनते ही वह एक बार चौंक उठी और अपनी कंपकंपी होंठों से दबाते हुए बोली-'वहाँ क्या कर रहे हैं।'

'संध्या ने उसे वहाँ का मैनेजर बना दिया है - कहता था एक बहन ने इंसान को हैवान बनाने में कसर न छोड़ी और दूसरी हैवान से देवता बनाने को सोच रही है।'

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