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नीलकण्ठ

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :431
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9707
आईएसबीएन :9781613013441

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गुलशन नन्दा का एक और रोमांटिक उपन्यास

दोनों ने एक-दूसरे को देखा और क्षण भर के लिए देखते ही रह गए। कुली ने सामान मोटर के पीछे रखा। बेला और संध्या मुस्कुराती हुई पीछे की सीट पर बैठ गईं। बेला तो इस गाड़ी को देखकर फूली न समा रही थी। जब गाड़ी पार्किंग स्टैंड से उतरकर पक्की सड़क पर आई तो बेला ने धीमे स्वर में पूछा-

'परंतु दीदी! आप कौन हैं?'

'ओह हमारा ड्राईवर!'

'क्या कहा, ड्राईवर?' आश्चर्य से बेला उसे देखते हुए बोली।

'हाँ! इसमें आश्चर्य की कौन सी बात है?'

'कुछ नहीं, यूं ही।' बेला खिलखिलाकर हँसने लगी और फिर हँसते हुए बोली-’दीदी, पापा ने गाड़ी तो गाड़ी, ड्राईवर भी लेटेस्ट मॉडल का रखा है।' संध्या उसकी यह बात सुन तनिक घबरा-सी गई। कहीं आनंद बुरा न मान जाए - कहीं इस उपहास का - बेला फिर कहने लगी-

'और हाँ दीदी, यह ड्राईवर कुछ अनाड़ी-सा ज्ञात होता है, देखो न भय से उसका पसीना छूट रहा है।'

'यह क्या कह रही हो?'

'हाँ-, देखकर सामने दर्पण में-' रंग पीला और माथे पर पसीना।'

संध्या ने सामने लगे दर्पण में देखा, आनंद की दशा सच ही ऐसी थी। उसी क्षण आनंद ने रुमाल से पसीना पोंछ लिया।

गाड़ी रुकते ही बेला बाहर निकली। मम्मी, पापा और रेनु पहले से ही उसके आने की प्रतीक्षा कर रहे थे। बेला भागकर पापा से लिपट गई। उन्हें छोड़ जैसे ही वह मम्मी से गले मिल रही थी उसने संध्या तथा आनंद को गाड़ी से अपना सूटकेस उतारते देखा। बेला झट से बोली-

'दीदी! रहने दो, ड्राईवर स्वयं ही रख लेगा!'

'ड्राईवर...!' आश्चर्य से रायसाहब के मुख से निकला।

'मेरा आशय' बेला कहते-कहते रुक गई। संध्या उसे मौन रहने का संकेत कर रही थी। समय की कठिनाई का अनुमान लगाकर वह उसकी बात काटते हुए बोली-

'पापा, बेला शायद इससे अनजान है कि अभी तक हमारे पास ड्राईवर नहीं है।' 'इसीलिए आज आनंद साहब को कष्ट उठाना पड़ा।' रायसाहब कृतज्ञतापूर्वक आनंद की ओर देखकर बोले।

'आप तो मुझे लज्जित कर रहे हैं। भला, यह भी कोई बड़ा कार्य था।' 'ओह! आप मिस्टर आनंद!' विस्फारित नेत्रों से देखते हुए बेला ने कंपित स्वर में कहा।

'क्या, संध्या ने इनके विषय में तुमसे कुछ नहीं कहा। यह मिस्टर आनंद हैं, जनरल मोटर कंपनी के मैनेजर और यह गाड़ी भी इनकी ही रुचि की है।' 'ओह! नमस्ते! दीदी ने तो मुझे कुछ और ही बताया था।'

इस बात पर सब हँस दिए। बेला और आनंद संध्या की ठिठोली पर और रायसाहब और मालकिन इस बात पर कि बेचारी कहती भी तो क्या? आनंद मेरा कौन है? दृष्टि नीचे किए संध्या झेंपकर भीतर चली गई और चाय का प्रबंध करने लगी। पापा ने बेला को मुँह-हाथ धोकर निबटने को कहा और स्वयं चाय की मेज पर आए। आनंद ने गाड़ी गैरेज में खड़ी करने की अनुमति लेकर उसे गैरेज में बंद कर दिया।

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