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नदी के द्वीप

सच्चिदानंद हीरानन्द वात्स्यायन अज्ञेय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :462
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9706
आईएसबीएन :9781613012505

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व्यक्ति अपने सामाजिक संस्कारों का पुंज भी है, प्रतिबिम्ब भी, पुतला भी; इसी तरह वह अपनी जैविक परम्पराओं का भी प्रतिबिम्ब और पुतला है-'जैविक' सामाजिक के विरोध में नहीं, उससे अधिक पुराने और व्यापक और लम्बे संस्कारों को ध्यान में रखते हुए।


रिक्शा रुक गया। सामने एल्फिन्स्टन की रंगीन बत्तियाँ थीं, एक बड़े भारी पोस्टर पर वही परिचित तिरछी खड़ी कोई 'लड़की', वही परिचित कन्धे पर से झाँकता हुआ 'लड़का'-पोस्टर में नहीं आया, लेकिन दाहने को ज़रूर एक पेड़ की शाखा होगी, जिस पर बड़ा-सा मैग्नोलिया का फूल होगा शायद कागज़ का, या शाखों पर दो फूल भी हो सकते हैं और लड़की-लड़के के तुक-ताल बँधे फ्लर्टेशन में बीच-बीच में दोनों पास-पास लाए जाएँगे और फिर दूर हट जायेंगे, छुएँगे नहीं, क्योंकि सेंसर के नियम में चुम्बन अभारतीय है, चाहे मुँह से सटा और न्योतता मुँह पाँच मिनट तक स्क्रीन पर स्थिर खड़ा रहे, और चवन्नीवाले सिटकारियाँ मारते और फब्तियाँ कसते रहे।

चन्द्रमाधव ने ज़ेब में हाथ डालकर पैसे निकालते हुए बड़े रूखे स्वर में रिक्शावाले से कहा, “लो!”

उसकी रुखाई से रिक्शावाले ने समझा कि बाबू साहब थोड़े पैसे दे रहे होंगे, पर हथेली पर एक-एक रुपए के दो नोट देखकर वह चौंक गया; फिर तत्परता से हाथ उठा कर बोला, “सलाम हुजूर!” उदारता के लिए धन्यवाद देने का और तरीका ही उसे नहीं आता था।

पर चन्द्रमाधव में उदारता नहीं थी। उसने जवाब में गुर्राकर कहा, “हूँ!” मानो कह रहा हो, 'जा साले, तू भी प्रातिनिधिक फ्लर्टेशन कर ले - और क्या तेरे भाग्य में बदा है!”

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